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मुझसे मिलने मत आओ मुझपे फतवा जारी है । | मुझसे मिलने मत आओ मुझपे फतवा जारी है । | ||
− | हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई आपस में सब भाई | + | हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई आपस में सब भाई हैं |
इस चक्कर मेँ मत पड़िएगा ये दावा अख़बारी है । | इस चक्कर मेँ मत पड़िएगा ये दावा अख़बारी है । | ||
− | भारतवासी कुछ दिन से रूखी रोटी खाते | + | भारतवासी कुछ दिन से रूखी रोटी खाते हैं |
− | पानी पीकर जीते हैं | + | पानी पीकर जीते हैं महँगी सब तरकारी है । |
जीना है तो झूठ भी बोलो घुमा-फिरा कर बात करो | जीना है तो झूठ भी बोलो घुमा-फिरा कर बात करो |
20:53, 17 फ़रवरी 2011 का अवतरण
सप्ताह की कविता | शीर्षक : घोटाले करने की शायद दिल्ली को बीमारी है रचनाकार: सिराज फ़ैसल ख़ान |
घोटाले करने की शायद दिल्ली को बीमारी है रपट लिखाने मत जाना तुम ये धंधा सरकारी है । तुमको पत्थर मारेंगे सब रुसवा तुम हो जाओगे मुझसे मिलने मत आओ मुझपे फतवा जारी है । हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई आपस में सब भाई हैं इस चक्कर मेँ मत पड़िएगा ये दावा अख़बारी है । भारतवासी कुछ दिन से रूखी रोटी खाते हैं पानी पीकर जीते हैं महँगी सब तरकारी है । जीना है तो झूठ भी बोलो घुमा-फिरा कर बात करो केवल सच्ची बातें करना बहुत बड़ी बीमारी है ।