भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सपने / बद्रीनारायण

24 bytes added, 16:09, 17 फ़रवरी 2011
}}
{{KKCatKavita‎}}
<poem>
मुझे मेरे सपनों से बचाओ
 
न जाने किसने डाल दिए ये सपने मेरे भीतर
 
ये मुझे भीतर ही भीतर कुतरते जाते हैं
 
ये धीरे-धीरे ध्वस्त करते जाते हैं मेरा व्यक्तित्व
 
ये मेरी आदमीयत को परास्त करते जाते हैं
 
ये मुझे डाल देते हैं भोग के उफनते पारावार में
 
जो निकलना भी चाहूँ तो ये ढकेल देते हैं
 
ये मेरी अच्छाइयों को मारते जाते हैं मेरे भीतर
 
ये मेरी संवेदना, मेरी मार्मिकता, मेरे पहले को हतते जाते हैं
 
ये मुझे ठेलते जाते हैं एक विशाल नर्क में
मईम मैं चीख़ता हूँ ज़ोर से 
आधी रात
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,679
edits