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"मेध गरजा। (प्रथम कविता का अंश) / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल" के अवतरणों में अंतर
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16:40, 20 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण
कविता का एक अंश ही उपलब्ध है। शेष कविता आपके पास हो तो कृपया जोड़ दें या कविता कोश टीम को भेजें ।
मेध गरजा। (प्रथम कविता का अंश)
मेध गरजा।
धोर नभ में मेध गरजा।
गिरी बरसा।
प्रलय रव से गिरी बरसा।
तोड शैलोें के शिखर,
बहा कर धारें प्रखर,
ले हजारों घने धुंधले निर्झरों को,
कह रही हैं वह नदी से
’उठ अरी उठ’
कई जन्मों के लिए तू आज भरजा,
मेध गरजा