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"मोह भंग(कविता का अंश ) / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल" के अवतरणों में अंतर
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खुली आंख जब, ईश्वर के चरणों में आये, | खुली आंख जब, ईश्वर के चरणों में आये, | ||
रूप और आनन्द ज्ञान तब तुमने पाये। | रूप और आनन्द ज्ञान तब तुमने पाये। |
16:43, 20 फ़रवरी 2011 का अवतरण
कविता का एक अंश ही उपलब्ध है। शेष कविता आपके पास हो तो कृपया जोड़ दें या कविता कोश टीम को भेजें ।मोह भंग(कविता का अंश )
खुली आंख जब, ईश्वर के चरणों में आये,
रूप और आनन्द ज्ञान तब तुमने पाये।
करता हूं स्वीकार प्रभेा! मैं न्याय तुम्हारा ,
करता हूं स्वीकार ,बेडियां ये, यह कारा।
सभी दिशायें मित्र , शत्रु है आज न कोई,
पाप नहीं प्राणों में मेरे लाज न कोई,
कोई क्या सोचता न कुछ चिंता है इसकी,
वस्तु नहीं ऐसी मुझे चाह हो कुछ जिसकी।