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जागरण / रामधारी सिंह "दिनकर"

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मैं शिशिर-शीर्णा चली, अब जाग ओ मधुमासवाली !
 
खोल दृग, मधु नींद तज, तंद्रालसे, रूपसि विजन की !
विश्व में तृण-तृण जगी है आज मधु की प्यास आली !
::मैं शिशिर-शीर्णा चली, अब जाग ओ मधुमासवाली !
 
पंथ में कोरकवती जूही खड़ी ले नम्र डाली।
::मैं शिशिर-शीर्णा चली, अब जाग ओ मधुमासवाली !
 
भृंग मधु पीने खड़े उद्यत लिये कर रिक्त प्याली ।
::मैं शिशिर-शीर्णा चली, अब जाग ओ मधुमासवाली !