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"वो सुकूँ है जबसे निकला हूँ उमस भरे मकाँ से / मयंक अवस्थी" के अवतरणों में अंतर

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18:10, 24 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण

वो सुकूँ है जबसे निकला हूँ उमस भरे मकाँ से
मुझे गर्म लू के झोंके भी लगे हैं सायबाँ से

ये तमाम उम्र गुज़री बड़े सख्त इम्तिहाँ से
न थी खुदकुशी की ताक़त न ही लड़ सके जहाँ से

शबे-ग़म की ज़ुल्मतों में ये ज़मीन मुतमईन थी
कभी आयेगा उतरकर कोई नूर कहकशाँ से

मैं शिकस्त दे चुका था कभी बहरे- बेकराँ को
मैं शिकस्त खा गया हूं किसी अश्के- बेज़ुबाँ से

मेरी शाइरी से हँसकर कहा दर्द ने चमक कर
कोई धूप भी तो निकली तेरे ग़म के आसमां से

 ओ चमन की ख़ाक पाँओं में भी बिछ के मिल सका क्या
 कोई प्यार इन गुलों से कोई रब्त बागबाँ से