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"वही अज़ाब वही आसरा भी जीने का / मयंक अवस्थी" के अवतरणों में अंतर

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18:11, 24 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण

वही अज़ाब वही आसरा भी जीने का
वो मेरा दिल ही नहीं ज़ख्म भी है सीने का

मैं बेलिबास ही शीशे के घर में रहता हूँ
 मुझे भी शौक है अपनी तरह से जीने का

वो देख चाँद की पुरनूर कहकशाओं मे
तमाम रंग है खुर्शीद के पसीने का

मैं पुरखुलूस हूँ फागुन की दोपहर की तरह
तेरा मिजाज़ लगे पूस के महीने का

समंदरों के सफ़र में सम्हाल कर रखना
किसी कुयें से जो पानी मिला है पीने का