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"सरे आम नीलाम जिंन्दगी/ शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर

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सरे आम नीलाम जिंन्दगी
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'''सरे आम नीलाम जिंन्दगी'''
गली गली में टंगे हुये हैं  
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दहशत के पैगाम  
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गली गली में टंगे हुये हैं,
ढूंढ रहे आकुल सन्नाटे  
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दहशत के पैगाम
लहरों में विश्राम।
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ढूंढ रहे आकुल सन्नाटे,
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लहरों में विश्राम।। 
 
उगे हुये हैं राजपथों पर  
 
उगे हुये हैं राजपथों पर  
झरवेरी कांटे,
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झरवेरी कांटे। 
 
मीठे मीठे दर्द हवा में  
 
मीठे मीठे दर्द हवा में  
मौसम ने बांटे,
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मौसम ने बांटे।।
 
सरे आम नीलाम जिन्दगी  
 
सरे आम नीलाम जिन्दगी  
 
सुख सुविधा के नाम।  
 
सुख सुविधा के नाम।  
वृद्ध सदी बीमार डगर है
 
पांव पडे छाले
 
त्रस्त कुटी ने अपने मुंह पर
 
डाल लिये ताले
 
 
गुनहगार माथे पर दिखता  
 
गुनहगार माथे पर दिखता  
लिखा राम का नाम
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लिखा राम का नाम।।
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वृद्ध सदी बीमार डगर है,
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पांव पडे छाले। 
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त्रस्त कुटी ने अपने मुंह पर,
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डाल लिये ताले।।
 
सीढी सीढी धूप सुनहली  
 
सीढी सीढी धूप सुनहली  
आंगन में उतरे
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आंगन में उतरे।
 
कमरों कमरों में अंधियारे  
 
कमरों कमरों में अंधियारे  
फिर भी हैं पसरे
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फिर भी हैं पसरे।। 
 
लोग लगाये बैठे अपने  
 
लोग लगाये बैठे अपने  
हाथों अपने दाम
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हाथों अपने दाम। 
 
ढूंढ रहे आकुल सन्नाटे  
 
ढूंढ रहे आकुल सन्नाटे  
लहरों में विश्राम
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लहरों में विश्राम।।
 
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17:32, 25 फ़रवरी 2011 का अवतरण

सरे आम नीलाम जिंन्दगी

गली गली में टंगे हुये हैं,
दहशत के पैगाम ।
ढूंढ रहे आकुल सन्नाटे,
लहरों में विश्राम।।
उगे हुये हैं राजपथों पर
झरवेरी कांटे।
मीठे मीठे दर्द हवा में
मौसम ने बांटे।।
सरे आम नीलाम जिन्दगी
सुख सुविधा के नाम।
गुनहगार माथे पर दिखता
लिखा राम का नाम।।
वृद्ध सदी बीमार डगर है,
पांव पडे छाले।
त्रस्त कुटी ने अपने मुंह पर,
डाल लिये ताले।।
सीढी सीढी धूप सुनहली
आंगन में उतरे।
कमरों कमरों में अंधियारे
फिर भी हैं पसरे।।
लोग लगाये बैठे अपने
हाथों अपने दाम।
ढूंढ रहे आकुल सन्नाटे
लहरों में विश्राम।।