"मेघ नंदिनी का परिचय / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल" के अवतरणों में अंतर
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− | तृतीय भाग 1944 से 1945 का है जबकि कवि मृत्यु को शाश्वत मानने लगता है। असह्य वेदना को सहते हुये उसे आत्म ज्ञान प्राप्त हो जाता है। ईश्वरीय आस्था के प्रति पूर्णरूपेण समर्पण का भाव उसमें व्याप्त होता है। सुख और दुख जीवन मृत्यु की सीमाओं से उपर उठा हुआ कवि इसमें प्रदर्शित होता है। | + | तृतीय भाग 1944 से 1945 का है जबकि कवि मृत्यु को शाश्वत मानने लगता है। असह्य वेदना को सहते हुये उसे आत्म ज्ञान प्राप्त हो जाता है। ईश्वरीय आस्था के प्रति पूर्णरूपेण समर्पण का भाव उसमें व्याप्त होता है। सुख और दुख जीवन मृत्यु की सीमाओं से उपर उठा हुआ कवि इसमें प्रदर्शित होता है। (अशोक कुमार शुक्ला द्वारा संकलित) |
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13:28, 26 फ़रवरी 2011 का अवतरण
इस संकलन को कवि के मित्र पं0 शंभू प्रसाद बहुगुणा द्वारा फरवरी 1953 में संपादित कर प्रकाशित किया गया है
यह गीति काव्य कृति हैं जिसमें कवि द्वारा मुख्य रूप से तीन धाराओं का वर्णन है
प्रथम भाग में वे रचनायें हैं जोकि सन 1938 से 1939 की निर्मित हैं इसमें कवि अपनी यौवना वस्था में पग रख चुके थे।
द्वितीय भाग 1940 से 1944 के मध्य का है जिसमे कवि को प्रेम और नैराश्ष्य मिला जिसे प्रेम की असफलता माना जाता है। दूसरी और क्षय रोग और असह्य वेदना इससे कराहता हुआ कवि का हृदय इसमें प्रदर्शित होता है।
तृतीय भाग 1944 से 1945 का है जबकि कवि मृत्यु को शाश्वत मानने लगता है। असह्य वेदना को सहते हुये उसे आत्म ज्ञान प्राप्त हो जाता है। ईश्वरीय आस्था के प्रति पूर्णरूपेण समर्पण का भाव उसमें व्याप्त होता है। सुख और दुख जीवन मृत्यु की सीमाओं से उपर उठा हुआ कवि इसमें प्रदर्शित होता है। (अशोक कुमार शुक्ला द्वारा संकलित)