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"अन्दर भरे हलाहल/ शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर
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अन्दर भरे हलाहल, बाहर | अन्दर भरे हलाहल, बाहर | ||
रूप सलोने हैं, | रूप सलोने हैं, | ||
धूपदान सुलगाने वाले | धूपदान सुलगाने वाले | ||
− | हाथ घिनौने | + | हाथ घिनौने हैं । |
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− | एक | + | एक आँख में बाल सुअर का, |
+ | एक आँख चर्बी, | ||
मन्द मन्द मुसकानें दिखतीं | मन्द मन्द मुसकानें दिखतीं | ||
होठों पर फिर भी, | होठों पर फिर भी, | ||
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− | बिछे बिछौने | + | ख़ून लगा दाँतों , मखमल के |
− | + | बिछे बिछौने हैं । | |
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+ | हाथों में बन्दूक थमी है | ||
+ | आँखों में लाली, | ||
लगता है भयमुक्त बनाने | लगता है भयमुक्त बनाने | ||
का दावा जाली, | का दावा जाली, | ||
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भूल चुके लोरी का सुनना | भूल चुके लोरी का सुनना | ||
− | घर के छौनें | + | घर के छौनें हैं । |
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+ | राम-नाम का जाप, गले में | ||
तुलसी के माले, | तुलसी के माले, | ||
− | दीवालों पर टंगी | + | दीवालों पर टंगी हुई हैं |
हिरनों की खालें, | हिरनों की खालें, | ||
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जिनके जितने लम्बे कद वो | जिनके जितने लम्बे कद वो | ||
− | उतने बौने | + | उतने बौने हैं । |
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− | हांथ घिनौने | + | धूपदान सुलगाने वाले |
+ | हांथ घिनौने हैं । | ||
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02:03, 27 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण
अन्दर भरे हलाहल, बाहर
रूप सलोने हैं,
धूपदान सुलगाने वाले
हाथ घिनौने हैं ।
एक आँख में बाल सुअर का,
एक आँख चर्बी,
मन्द मन्द मुसकानें दिखतीं
होठों पर फिर भी,
ख़ून लगा दाँतों , मखमल के
बिछे बिछौने हैं ।
हाथों में बन्दूक थमी है
आँखों में लाली,
लगता है भयमुक्त बनाने
का दावा जाली,
भूल चुके लोरी का सुनना
घर के छौनें हैं ।
राम-नाम का जाप, गले में
तुलसी के माले,
दीवालों पर टंगी हुई हैं
हिरनों की खालें,
जिनके जितने लम्बे कद वो
उतने बौने हैं ।
धूपदान सुलगाने वाले
हांथ घिनौने हैं ।