भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"ग़ज़ल-1 / मुकेश मानस" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Mukeshmanas (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुकेश मानस |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> खुद से ही बेगाने …) |
(कोई अंतर नहीं)
|
13:06, 27 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण
खुद से ही बेगाने हैं
दर्द भरे अफ़साने हैं
जब भी अपने भीतर झांका
तह्ख़ाने-तह्ख़ाने हैं
हमको धोखा देने वाले
सब जाने पहचाने हैं
अब भीतर का दिया जलालो
कदम-कदम वीराने हैं
1995