"दूर क्षितिज पर सूरज चमका,सुब्ह खड़ी है आने को / गौतम राजरिशी" के अवतरणों में अंतर
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गौतम राजरिशी |संग्रह= }} <poem>दूर क्षितिज पर सूरज चम...) |
|||
पंक्ति 26: | पंक्ति 26: | ||
अपने हाथों की रेखायें कर ले तू अपने वश में | अपने हाथों की रेखायें कर ले तू अपने वश में | ||
− | तेरी रूठी किस्मत ’गौतम’,आये कौन मनाने को</poem> | + | तेरी रूठी किस्मत ’गौतम’,आये कौन मनाने को |
+ | |||
+ | {त्रैमासिक लफ़्ज़, सितम्बर-नवम्बर 2009} | ||
+ | </poem> |
14:31, 27 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण
दूर क्षितिज पर सूरज चमका,सुब्ह खड़ी है आने को
धुंध हटेगी,धूप खिलेगी,साल नया है छाने को
प्रत्यंचा की टंकारों से सारी दुनिया गुंजेगी
देश खड़ा अर्जुन बन कर गांडिव पे बाण चढ़ाने को
साहिल पर यूं सहमे-सहमे वक्त गंवाना क्या यारों
लहरों से टकराना होगा पार समन्दर जाने को
हुस्नो-इश्क पुरानी बातें,कैसे इनसे शेर सजे
आज गज़ल तो तेवर लायी सोती रूह जगाने को
पेड़ों की फुनगी पर आकर बैठ गयी जो धूप जरा
आँगन में ठिठकी सर्दी भी आये तो गरमाने को
टेढ़ी भौंहों से तो कोई बात नहीं बनने वाली
मुट्ठी कब तक भींचेंगे हम,हाथ मिले याराने को
साल गुजरता सिखलाता है,भूल पुरानी बातें अब
साज नया हो,गीत नया हो,छेड़ नये अफ़साने को
अपने हाथों की रेखायें कर ले तू अपने वश में
तेरी रूठी किस्मत ’गौतम’,आये कौन मनाने को
{त्रैमासिक लफ़्ज़, सितम्बर-नवम्बर 2009}