भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"धूप होते हुये बादल नहीं माँगा करते / तुफ़ैल चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= तुफ़ैल चतुर्वेदी }} {{KKCatGhazal}} <poem>धूप होते हुये बादल …) |
(कोई अंतर नहीं)
|
15:00, 27 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण
धूप होते हुये बादल नहीं माँगा करते
हमसे पागल तेरा आँचल नहीं माँगा करते
हम फ़कीरों को ये कथरी, ये चटाई है बहुत
हम कभी शाहों से मखमल नहीं माँगा करते
छीन लो वरना न कुछ होगा निदामत के सिवा
प्यास के राज में छागल नहीं माँगा करते
हम बुजुर्गों की रिवायत से जु़ड़े हैं भाई
नेकियाँ करके कभी फल नहीं माँगा करते
देना चाहे तू अगर दे हमें दीदार की भीख
और कुछ भी तेरे पागल नहीं माँगा करते
आज के दौर से उम्मीदे-वफ़ा, होश में हो?
यार अंधों से तो काजल नहीं माँगा करते