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"जब से तुम्हें देखा है / प्रतिभा सक्सेना" के अवतरणों में अंतर

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जब से तुम्हें देखा है अखबार के पन्ने पर ,
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मन का चैन उड़ गया है, समीरा !
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पल-पल अपने ज़मीर को मारती हुई
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कैसे जीती हो इतनी कालिमा ओढ़े !
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एक हथियार बन उनके हाथों का
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करती हुई अनगिनती समीराओं का शिकार !
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वे रौंद देते है उन्हें कि तुम समझा सको कि अब दो ही रास्ते हैं
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उनकी ज़लालत भरी ज़िन्दगी के लिये ,
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जमीन में आधी गाड़ी जा कर पत्थरों की बौछार
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अल्लाह के नाम पर कुर्बान हो जाओ -
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जीवित बम बन
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कितनों की मौत बन चिथड़े उड़वा दो अपने !
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इन औरतों के लिये ,
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चैन नहीं कहीं।
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मरने के बाद भी
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जहन्नुम का इन्ज़ाम पक्का !
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बहुत सचेत हैं वे दरिन्दे कि
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कहीं कोई कँवारी अल्लाह को प्यारी हो
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जन्नत न पा जाये !
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छोड़ देते हैं कोई मुस्टंडा उसके ऊपर !
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एक या दस ,उन्हें क्या फ़र्क पड़ता है
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झेलना तो  उसे है भयावह मौत !
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कैसे छल पाती हो समीरा ,
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अपने आप को ?
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कैसी ज़िन्दगी है तुम्हारी !
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अल्लाह के नाम पर ,
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कैसी दरिन्दगी है !
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औरत ?
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मर्दों का एक खिलौना ,
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बचपन से ही काट-छाँट ,
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अपने सुख और अहम् की तुष्टि के लिये !
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जी भर खेला और फेंक दिया !
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तुम भी तो एक औरत हो !
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तुम्हें कुछ नहीं लगता !
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सोचा है कभी
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कि उनके जन्नत में तुम्हारी कहीं गुज़र नहीं !
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कैसे जीती हो तुम ,मेरा तो चैन उड़ गया है समीरा !
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जब से तुम्हें देखा है !
  
 
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08:20, 28 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण

जब से तुम्हें देखा है अखबार के पन्ने पर ,
मन का चैन उड़ गया है, समीरा !
पल-पल अपने ज़मीर को मारती हुई
कैसे जीती हो इतनी कालिमा ओढ़े !
एक हथियार बन उनके हाथों का
करती हुई अनगिनती समीराओं का शिकार !
वे रौंद देते है उन्हें कि तुम समझा सको कि अब दो ही रास्ते हैं
उनकी ज़लालत भरी ज़िन्दगी के लिये ,
जमीन में आधी गाड़ी जा कर पत्थरों की बौछार
या
अल्लाह के नाम पर कुर्बान हो जाओ -
जीवित बम बन
कितनों की मौत बन चिथड़े उड़वा दो अपने !
इन औरतों के लिये ,
चैन नहीं कहीं।
मरने के बाद भी
जहन्नुम का इन्ज़ाम पक्का !
बहुत सचेत हैं वे दरिन्दे कि
कहीं कोई कँवारी अल्लाह को प्यारी हो
जन्नत न पा जाये !
छोड़ देते हैं कोई मुस्टंडा उसके ऊपर !
एक या दस ,उन्हें क्या फ़र्क पड़ता है
झेलना तो उसे है भयावह मौत !
कैसे छल पाती हो समीरा ,
अपने आप को ?
कैसी ज़िन्दगी है तुम्हारी !
अल्लाह के नाम पर ,
कैसी दरिन्दगी है !
औरत ?
मर्दों का एक खिलौना ,
बचपन से ही काट-छाँट ,
अपने सुख और अहम् की तुष्टि के लिये !
जी भर खेला और फेंक दिया !
तुम भी तो एक औरत हो !
तुम्हें कुछ नहीं लगता !
सोचा है कभी
कि उनके जन्नत में तुम्हारी कहीं गुज़र नहीं !
कैसे जीती हो तुम ,मेरा तो चैन उड़ गया है समीरा !
जब से तुम्हें देखा है !