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"शब्द मेरे हैं / प्रतिभा सक्सेना" के अवतरणों में अंतर

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व्यक्ति औ अभिव्यक्ति को एकात्म करते जो ,
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स्वरित मेरे स्वत्व के
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मुखरित बसेरे हैं !
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शब्द मेरे हैं !
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स्वयं वाणी का कलामय तंत्र अभिमंत्रित,
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लग रहा ये प्राण ही शब्दित हुये मुखरित,
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सृष्टि के संवेदनों की चित्र-लिपि धारे
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सहज ही सौंदर्य के वरदान से मंडित !
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शाम है विश्राममय
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मुखरित सबेरे हैं !
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शब्द मेरे हैं !
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बाँसुरी ,उर-तंत्र में झंकार भरती जो ,
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अतीन्द्रिय अनुभूति बन गुंजार करती जो
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निराकार प्रकार  को साकार करते जो
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मनोमय हर कोश के
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सकुशल चितेरे हैं !
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शब्द मेरे हैं !
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व्याप्ति है ''मैं' की जहाँ तक विश्व- दर्पण में ,
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प्राप्ति है जितनी कि निजता  के समर्पण में
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भूमिका धारे वहन की अर्थ-तत्वों के,
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अंजली भर -भर  दिशाओं ने बिखेरे हैं !
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पूर्णता पाकर अहेतुक प्रेम से  लहरिल
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मनःवीणा ने अमल स्वर ये बिखेरे हैं !
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ध्वनि समुच्चय ही न
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इनके अर्थ गहरे  हैं  !
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शब्द मेरे हैं !
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प्रतिभा.
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शब्द मेरे हैं !
  
 
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08:47, 28 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण

शब्द मेरे हैं
अर्थ मैंने ही दिये ये शब्द मेरे हैं !
व्यक्ति औ अभिव्यक्ति को एकात्म करते जो ,
यों कि मेरे आत्म का प्रतिरूप धरते हों !
स्वरित मेरे स्वत्व के
मुखरित बसेरे हैं !
शब्द मेरे हैं !


स्वयं वाणी का कलामय तंत्र अभिमंत्रित,
लग रहा ये प्राण ही शब्दित हुये मुखरित,
सृष्टि के संवेदनों की चित्र-लिपि धारे
सहज ही सौंदर्य के वरदान से मंडित !
शाम है विश्राममय
मुखरित सबेरे हैं !
शब्द मेरे हैं !


बाँसुरी ,उर-तंत्र में झंकार भरती जो ,
अतीन्द्रिय अनुभूति बन गुंजार करती जो
निराकार प्रकार को साकार करते जो
 मनोमय हर कोश के
सकुशल चितेरे हैं !
शब्द मेरे हैं !


व्याप्ति है मैं' की जहाँ तक विश्व- दर्पण में ,
प्राप्ति है जितनी कि निजता के समर्पण में
 भूमिका धारे वहन की अर्थ-तत्वों के,
अंजली भर -भर दिशाओं ने बिखेरे हैं !

पूर्णता पाकर अहेतुक प्रेम से लहरिल
मनःवीणा ने अमल स्वर ये बिखेरे हैं !
ध्वनि समुच्चय ही न
 इनके अर्थ गहरे हैं  !
शब्द मेरे हैं !
प्रतिभा.
 शब्द मेरे हैं !