भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"होटल / अरुण कमल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार= | + | |रचनाकार=अरुण कमल |
|संग्रह = अपनी केवल धार / अरुण कमल | |संग्रह = अपनी केवल धार / अरुण कमल | ||
}} | }} |
01:29, 19 मई 2008 का अवतरण
1
सब कुछ यही रहता
ऎसी ही थाली
ऎसी ही कटोरी, ऎसा ही गिलास
ऎसी ही रोटी और ऎसा ही पानी;
बस थाली के एक तरफ़
माँ ने रख दी होती एक सुडौल हरी मिर्च
और थोड़ा-सा नमक ।
2
जैसे ही कौर उठाया
हाथ रुक गया ।
सामने किवाड़ से लगकर
रो रहा था वह लड़का
जिसने मेरे सामने
रक्खी थी थाली ।