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+ | बिदा ,प्रिय स्मृतियों ,आशाओं-इच्छाओं ,संबंधों , | ||
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+ | कि आगे निकल सकूँ, | ||
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+ | कि नये दृष्य ,नये अनुभव, | ||
+ | मुक्त चेतना में समा सकें , | ||
+ | कि एकदम अनाम अनुभूतियाँ | ||
+ | अजाने संवेदन ग्रहण करने को | ||
+ | मन के स्तर खुल जायें ! | ||
+ | रह जाऊँ एकदम | ||
+ | खाली स्लेट, | ||
+ | कि होनेवाले अंकन सुस्पष्ट रहें ! | ||
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08:59, 28 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण
पुकार आ रही है !
आसार बन रहे हैं एक नई यात्रा के !
आहट सुन कसक उठी भीतर से ;
हर यात्रा की पूर्व संध्या होता है ऐसा !
सीमित आत्म से निकल
विराट् में प्रवेश करने का द्वार -
यात्रा !
तैयार हो लूँ !
जहाँ ,जिस तरह रही ,
घेरे से बाहर निकल आऊँ
सारा ताम-झाम छोड़ !
बिदा ,प्रिय स्मृतियों ,आशाओं-इच्छाओं ,संबंधों ,
स्वीकार लो प्रणाम मेरा ,
कि आगे निकल सकूँ,
निरी एकाकी ,निरुद्विग्न और निरपेक्ष !
कि नये दृष्य ,नये अनुभव,
मुक्त चेतना में समा सकें ,
कि एकदम अनाम अनुभूतियाँ
अजाने संवेदन ग्रहण करने को
मन के स्तर खुल जायें !
रह जाऊँ एकदम
खाली स्लेट,
कि होनेवाले अंकन सुस्पष्ट रहें !