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+ | फिर कहीं कोई विवशता टेर लेगी. | ||
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+ | द्विविधा लौट कर फिर घेर लेगी . | ||
+ | रस्ते से बुला ले कोई रुकावट , | ||
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+ | एक दिन सबसे उबर लूँ सिर चढ़े जो दोष, | ||
+ | उसी दिन ऐसा लगेगा अब न कोई टोक . | ||
+ | बीत जाये यह विषम घड़ियाँ बड़ी हैं, | ||
+ | तपन औ', विश्रान्ति शीतल हो कि जब अनयास . | ||
+ | चली आऊँगी तुम्हारे पास ! | ||
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+ | कुछ समझना रह गया होगा , | ||
+ | कहीं कच्चापन बचा होगा . | ||
+ | पार हो जायें सभी व्यवधान , | ||
+ | पूर्ण अपने स्वयं का संधान . | ||
+ | एक दिन आँसू जमे , | ||
+ | जब पिघल-गल बह जायँ अपने आप , | ||
+ | चली आऊँगी तुम्हारे पास ! | ||
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+ | देह के, मन के अभी तो शेष हैं घेरे . | ||
+ | यहाँ के व्यवहार के बाकी अभी फेरे. | ||
+ | कामना के साथ कितने जाल - | ||
+ | घेरते बन व्याल . | ||
+ | सभी धो लूँ दोष, विभ्रमों से मुक्त , | ||
+ | हो सहज निष्पाप. | ||
+ | नृत्य सी लालित्यमय | ||
+ | बन जाय हर पदचाप . | ||
+ | चली आऊँगी तुम्हारे पास ! | ||
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+ | एक दिन अति शान्त मन | ||
+ | मैं चली आऊँगी तुम्हारे पास ! | ||
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09:07, 28 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण
एक दिन अति शान्त मन
मैं चली आऊँगी तुम्हारे पास .
दीप की कँपती हुई लौ जल सके निर्वात ,
तभी आऊँगी तुम्हारे पास !
और, विचलित न हो जब थिर हो सकूँ,
मौसमों से दोस्ती के बीज फिर से बो सकूँ ,
अभी थोड़ा भ्रम बचा ही रह गया होगा .
उबर कर मैं चली आऊँगी तुम्हारे पास !
अभी राहें कहाँ चल कर पास आने को,
रीति-नीति सभी निभाने को पड़ी हैं .
निर्णयों में देर ही होती चली जाती,
और भी कठिनाइयाँ आकर अड़ी हैं .
अभी कहाँ निवृत्ति मेरी ,
शेष हैं कुछ ऋण चुकाने को .
एक दिन जब चुप न रह कर,
बहूँ निर्झऱ सी बिना आयास
चली आऊँगी तुम्हारे पास !
मत बुलाना ,
फिर कहीं कोई विवशता टेर लेगी.
टेरना मत अभी,
द्विविधा लौट कर फिर घेर लेगी .
रस्ते से बुला ले कोई रुकावट ,
कहीं फिर जाऊँ वहीं चुपचाप.
एक दिन सबसे उबर लूँ सिर चढ़े जो दोष,
उसी दिन ऐसा लगेगा अब न कोई टोक .
बीत जाये यह विषम घड़ियाँ बड़ी हैं,
तपन औ', विश्रान्ति शीतल हो कि जब अनयास .
चली आऊँगी तुम्हारे पास !
कुछ समझना रह गया होगा ,
कहीं कच्चापन बचा होगा .
पार हो जायें सभी व्यवधान ,
पूर्ण अपने स्वयं का संधान .
एक दिन आँसू जमे ,
जब पिघल-गल बह जायँ अपने आप ,
चली आऊँगी तुम्हारे पास !
देह के, मन के अभी तो शेष हैं घेरे .
यहाँ के व्यवहार के बाकी अभी फेरे.
कामना के साथ कितने जाल -
घेरते बन व्याल .
सभी धो लूँ दोष, विभ्रमों से मुक्त ,
हो सहज निष्पाप.
नृत्य सी लालित्यमय
बन जाय हर पदचाप .
चली आऊँगी तुम्हारे पास !
एक दिन अति शान्त मन
मैं चली आऊँगी तुम्हारे पास !