भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"तोल अपने को तोल / जमील मज़हरी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 11: पंक्ति 11:
 
                         तोल अपने को तोल,
 
                         तोल अपने को तोल,
  
यह गेसू, यह बिखरे गेसू, नाग हैं, काले नाग
+
यह गेसू<ref>बालों की लटें</ref>, यह बिखरे गेसू, नाग हैं, काले नाग
 
इन तिरछी-तिरछी नज़रों को लाग है, तुझसे लाग
 
इन तिरछी-तिरछी नज़रों को लाग है, तुझसे लाग
 
रूप की इस सुंदर नगरी से, भाग रे शाइर भाग
 
रूप की इस सुंदर नगरी से, भाग रे शाइर भाग
पंक्ति 17: पंक्ति 17:
 
                         तोल अपने को तोल ।             
 
                         तोल अपने को तोल ।             
 
</poem>
 
</poem>
 +
{{KKMeaning}}

13:02, 1 मार्च 2011 के समय का अवतरण

देख के कर्रोफ़र दौलत की तेरा जी ललचाय
सूँघ के मुश्की ज़ुल्फ़ों की बू नींद-सी तुझ को आए
जैसे बे-लंगर की किश्ती लहरों में बोलाय
      मन की मौज में तेरी नीयत यूँ है डावाँडोल
                        तोल अपने को तोल,

यह गेसू<ref>बालों की लटें</ref>, यह बिखरे गेसू, नाग हैं, काले नाग
इन तिरछी-तिरछी नज़रों को लाग है, तुझसे लाग
रूप की इस सुंदर नगरी से, भाग रे शाइर भाग
      तुझसे तुझको छीन रहे हैं, यह परियों के गोल
                        तोल अपने को तोल ।

शब्दार्थ
<references/>