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"परीशाँ हो के मेरी ख़ाक आख़िर दिल न बन जाए / इक़बाल" के अवतरणों में अंतर
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14:40, 1 मार्च 2011 का अवतरण
परीशाँ होके मेरी खाक आखिर दिल न बन जाये जो मुश्किल अब हे या रब फिर वही मुश्किल न बन जाये
न करदें मुझको मज़बूरे नवा फिरदौस में हूरें मेरा सोज़े दरूं फिर गर्मीए महेफिल न बन जाये
कभी छोडी हूई मज़िलभी याद आती है राही को खटक सी है जो सीने में गमें मंज़िल न बन जाये
कहीं इस आलमें बे रंगो बूमें भी तलब मेरी वही अफसाना दुन्याए महमिल न बन जाये
अरूज़े आदमे खाकी से अनजुम सहमे जातें है कि ये टूटा हुआ तारा महे कामिल न बन जा