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"आजु नाथ एक व्रत महा सुख लागत हे" के अवतरणों में अंतर
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आजु नाथ एक व्रत महा सुख लागत हे,<br />आहे तोहे शिव धरु नट भेष कि डमरू बजावथ हे।<br />तोहे गौरी कहई छी नाचय कि हम कोना क नाचब हे,<br /> | आजु नाथ एक व्रत महा सुख लागत हे,<br />आहे तोहे शिव धरु नट भेष कि डमरू बजावथ हे।<br />तोहे गौरी कहई छी नाचय कि हम कोना क नाचब हे,<br /> | ||
− | चारी सोच मोही होय कि हम कोना बांचब हे।<br />अमिय चूई भूमि खसत बाघम्बर जागत हे,<br />आहे होयत बाघम्बर बाघ बसहो धरि खायत हे।<br />सिर स संसरत सांप कि भूमि लोटायत हे,<br /> | + | चारी सोच मोही होय कि हम कोना बांचब हे।<br />अमिय चूई भूमि खसत बाघम्बर जागत हे,<br />आहे होयत बाघम्बर बाघ बसहो धरि खायत हे।<br />सिर स संसरत सांप कि भूमि लोटायत हे,<br />आहे कार्तिक पोसल मयुर सेहो धरि खायत हे।<br />जटा स छलकत गंगा दसो दिस पाटत हे,<br />आहे होयत सहस्र मुख धार समेटलो नै जायत हे।<br />मुंडमाल छूटि खसत मसानी जागत हे,<br />आहे तोहे गौरी जेबहु पराय कि नाच के देखत हे।<br />भनहि विद्यापति गाओल गावि सुनाओल हे,<br />आहे राखल गौरी के मान चारु बचावल हे। |
+ | '''यह गीत श्रीमती रीता मिश्र की डायरी से ली गयी है.''' | ||
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+ | अमितेश |
01:44, 2 मार्च 2011 का अवतरण
♦ रचनाकार: अज्ञात
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आजु नाथ एक व्रत महा सुख लागत हे,
आहे तोहे शिव धरु नट भेष कि डमरू बजावथ हे।
तोहे गौरी कहई छी नाचय कि हम कोना क नाचब हे,
चारी सोच मोही होय कि हम कोना बांचब हे।
अमिय चूई भूमि खसत बाघम्बर जागत हे,
आहे होयत बाघम्बर बाघ बसहो धरि खायत हे।
सिर स संसरत सांप कि भूमि लोटायत हे,
आहे कार्तिक पोसल मयुर सेहो धरि खायत हे।
जटा स छलकत गंगा दसो दिस पाटत हे,
आहे होयत सहस्र मुख धार समेटलो नै जायत हे।
मुंडमाल छूटि खसत मसानी जागत हे,
आहे तोहे गौरी जेबहु पराय कि नाच के देखत हे।
भनहि विद्यापति गाओल गावि सुनाओल हे,
आहे राखल गौरी के मान चारु बचावल हे।
यह गीत श्रीमती रीता मिश्र की डायरी से ली गयी है.
अमितेश