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"देवी स्तुति -स्तुति / तुलसीदास" के अवतरणों में अंतर

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8देवी स्तुति-1
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दुसह दोषं-दुचा,दति, करू देवि दाया।
 
दुसह दोषं-दुचा,दति, करू देवि दाया।
 
विश्व- मूलाऽसि, जन- सानुकूलाऽसि, कर शूलधारिणि महामूलमाया।1।
 
विश्व- मूलाऽसि, जन- सानुकूलाऽसि, कर शूलधारिणि महामूलमाया।1।
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तडित गर्भांग सर्वंाग सुन्दर लसत, दिव्य पट भूषण विराजैं।
 
तडित गर्भांग सर्वंाग सुन्दर लसत, दिव्य पट भूषण विराजैं।
 
बालमृग-मंजु खंजन- विलोचनि, चन्द्रवदनि लखि कोटि रतिमार लाजैं।2।
 
बालमृग-मंजु खंजन- विलोचनि, चन्द्रवदनि लखि कोटि रतिमार लाजैं।2।
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रूप-सुख-शील-सीमाऽसि, भीमाऽसि,रामाऽसि, वामाऽसि वर बुद्धि बानी।
 
रूप-सुख-शील-सीमाऽसि, भीमाऽसि,रामाऽसि, वामाऽसि वर बुद्धि बानी।
 
छमुख-हेरंब-अंबासि, जगदंबिके, शंभु-जायासि जय जय भवानी।3।
 
छमुख-हेरंब-अंबासि, जगदंबिके, शंभु-जायासि जय जय भवानी।3।
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चंड-भुजदंड-खंडनि, बिहंडनि महिष मुंड -मद- भंग कर अंग तोरे।
 
चंड-भुजदंड-खंडनि, बिहंडनि महिष मुंड -मद- भंग कर अंग तोरे।
 
शुंभु -निःशुंभ-कुम्भीश रण-केशरिणि, क्रोध-वारीश अरि -वृन्द बोरे।4।
 
शुंभु -निःशुंभ-कुम्भीश रण-केशरिणि, क्रोध-वारीश अरि -वृन्द बोरे।4।
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निगम आगम-अगम गुर्वि! तव गुन-कथन, उर्विधर करत जेहि सहस जीहा।
 
निगम आगम-अगम गुर्वि! तव गुन-कथन, उर्विधर करत जेहि सहस जीहा।
 
देहि मा, मोहि पन प्रेम यह नेम निज, राम घनश्याम तुलसी पपीहा।5।
 
देहि मा, मोहि पन प्रेम यह नेम निज, राम घनश्याम तुलसी पपीहा।5।
 
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13:21, 3 मार्च 2011 का अवतरण

देवी स्तुति-1

दुसह दोषं-दुचा,दति, करू देवि दाया।
विश्व- मूलाऽसि, जन- सानुकूलाऽसि, कर शूलधारिणि महामूलमाया।1।

तडित गर्भांग सर्वंाग सुन्दर लसत, दिव्य पट भूषण विराजैं।
बालमृग-मंजु खंजन- विलोचनि, चन्द्रवदनि लखि कोटि रतिमार लाजैं।2।

रूप-सुख-शील-सीमाऽसि, भीमाऽसि,रामाऽसि, वामाऽसि वर बुद्धि बानी।
छमुख-हेरंब-अंबासि, जगदंबिके, शंभु-जायासि जय जय भवानी।3।

चंड-भुजदंड-खंडनि, बिहंडनि महिष मुंड -मद- भंग कर अंग तोरे।
शुंभु -निःशुंभ-कुम्भीश रण-केशरिणि, क्रोध-वारीश अरि -वृन्द बोरे।4।

निगम आगम-अगम गुर्वि! तव गुन-कथन, उर्विधर करत जेहि सहस जीहा।
देहि मा, मोहि पन प्रेम यह नेम निज, राम घनश्याम तुलसी पपीहा।5।