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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार: [[=बशीर बद्र]][[Category:कविताएँ]][[Category:गज़ल]][[Category:|संग्रह=उजाले अपनी यादों के / बशीर बद्र]]}} {{KKCatGhazal}}<poem>सियाहियों के बने हर्फ़-हर्फ़ धोते हैंये लोग रात में काग़ज़ कहाँ भिगोते हैं
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~किसी की राह में दहलीज़ पर दिया न रखोकिवाड़ सूखी हुई लकड़ियों के होते हैं
सियाहियों के बने हर्फ़ हर्फ़ धोते हैं<br>चराग़ पानी में मौजों से पूछते होंगेये वो कौन लोग रात में काग़ज़ कहाँ भिगोते हैं<br><br>जो कश्तियाँ डुबोते हैं
किसी की शह क़दीम क़स्बों में दहलीज़ पर दिया न रखो<br>क्या सुकून होता हैकिवाड़ सूखी हुई लकड़ियों के होते थके थकाये हमारे बुज़ुर्ग सोते हैं<br><br>
चराग़ पानी में मौजों से पूछते होंगे<br>वो कौन लोग हैं जो कश्तियाँ डुबोते हैं<br><br> क़दीम क़स्बों में क्या सुकून होता है<br>थके थकाये हमारे बुज़ुर्ग सोते हैं<br><br> चमकती है कहीं सदियों में आँसुओं की ज़मीं<br>ग़ज़ल के शेर कहाँ रोज़ -रोज़ होते हैं<br><br/poem>
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