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"श्री सीता स्तुति/ तुलसीदास" के अवतरणों में अंतर
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मेरिऔ सुधि द्याइबी, कछु करून-कथा चलाइ।1। | मेरिऔ सुधि द्याइबी, कछु करून-कथा चलाइ।1। | ||
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दीन, सब अंगहीन, छीन, मलीन, अघी अघाइ। | दीन, सब अंगहीन, छीन, मलीन, अघी अघाइ। | ||
नाम लै भरै उदर एक प्रभु-दासी-दास कहाइ।2। | नाम लै भरै उदर एक प्रभु-दासी-दास कहाइ।2। | ||
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बुझिहैं ‘सो है कौन’, कहिबी नाम दसा जनाइ। | बुझिहैं ‘सो है कौन’, कहिबी नाम दसा जनाइ। | ||
− | सुनत राम कृपालुके मेरी बिगरिऔ बनि जाइ।3। | + | सुनत राम कृपालुके मेरी बिगरिऔ बनि जाइ।3। |
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जानकी जगजननि जनकी किये बचन सहाइ। | जानकी जगजननि जनकी किये बचन सहाइ। | ||
तरै तुलसिदास भव तव नाथ -गुन-गन-गाइ।4। | तरै तुलसिदास भव तव नाथ -गुन-गन-गाइ।4। | ||
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क्कबहुँ समय सुधि द्यायबी, मेरी मातु जानकी। | क्कबहुँ समय सुधि द्यायबी, मेरी मातु जानकी। | ||
− | जन कहाइ नाम लेत हौं, किये पन चातक ज्यों, प्यास प्रेम-पानकी।1। | + | जन कहाइ नाम लेत हौं, किये पन चातक ज्यों, प्यास प्रेम-पानकी।1। |
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सरल कहाई प्रकृति आपु जानिए करूना-निधानकी। | सरल कहाई प्रकृति आपु जानिए करूना-निधानकी। | ||
− | निजगुन, अरिकृत अनहितौ, दास-दोष सुरति चित रहत न दिये दानकी।2। | + | निजगुन, अरिकृत अनहितौ, दास-दोष सुरति चित रहत न दिये दानकी।2। |
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बानि बिसारनसील है मानद अमानकी। | बानि बिसारनसील है मानद अमानकी। | ||
तुलसीदास न बिसारिये, मन करम बचन जाके, सपनेहुँ गति न आनकी।3। | तुलसीदास न बिसारिये, मन करम बचन जाके, सपनेहुँ गति न आनकी।3। | ||
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13:24, 6 मार्च 2011 के समय का अवतरण
श्रीसीता-स्तुति-
(राग केदारा)
41
कबहुँक अंब, अवसर पाइ।
मेरिऔ सुधि द्याइबी, कछु करून-कथा चलाइ।1।
दीन, सब अंगहीन, छीन, मलीन, अघी अघाइ।
नाम लै भरै उदर एक प्रभु-दासी-दास कहाइ।2।
बुझिहैं ‘सो है कौन’, कहिबी नाम दसा जनाइ।
सुनत राम कृपालुके मेरी बिगरिऔ बनि जाइ।3।
जानकी जगजननि जनकी किये बचन सहाइ।
तरै तुलसिदास भव तव नाथ -गुन-गन-गाइ।4।
42
क्कबहुँ समय सुधि द्यायबी, मेरी मातु जानकी।
जन कहाइ नाम लेत हौं, किये पन चातक ज्यों, प्यास प्रेम-पानकी।1।
सरल कहाई प्रकृति आपु जानिए करूना-निधानकी।
निजगुन, अरिकृत अनहितौ, दास-दोष सुरति चित रहत न दिये दानकी।2।
बानि बिसारनसील है मानद अमानकी।
तुलसीदास न बिसारिये, मन करम बचन जाके, सपनेहुँ गति न आनकी।3।