भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सरे आम नीलाम जिंन्दगी/ शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान  
 
|रचनाकार=शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान  
 +
|संग्रह=आराधना के स्वर / शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान
 
}}
 
}}
 
{{KKCatNavgeet}}
 
{{KKCatNavgeet}}

13:48, 6 मार्च 2011 के समय का अवतरण

सरे आम नीलाम जिंन्दगी

गली गली में टंगे हुये हैं,
दहशत के पैगाम ।
ढूंढ रहे आकुल सन्नाटे,
लहरों में विश्राम।।
उगे हुये हैं राजपथों पर
झरवेरी कांटे।
मीठे मीठे दर्द हवा में
मौसम ने बांटे।।
सरे आम नीलाम जिन्दगी
सुख सुविधा के नाम।
गुनहगार माथे पर दिखता
लिखा राम का नाम।।
वृद्ध सदी बीमार डगर है,
पांव पडे छाले।
त्रस्त कुटी ने अपने मुंह पर,
डाल लिये ताले।।
सीढी सीढी धूप सुनहली
आंगन में उतरे।
कमरों कमरों में अंधियारे
फिर भी हैं पसरे।।
लोग लगाये बैठे अपने
हाथों अपने दाम।
ढूंढ रहे आकुल सन्नाटे
लहरों में विश्राम।।
गली गली में टंगे हुये हैं,
दहशत के पैगाम ।