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"वेदना गीत / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल" के अवतरणों में अंतर
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+ | जब दृगों में हो निराशापुर्ण धन-संचय । | ||
सुख मैं जिसे समझता था वह दारूण दुख था, | सुख मैं जिसे समझता था वह दारूण दुख था, | ||
निश्छल सा देखा मैने उस छल का मुख था। | निश्छल सा देखा मैने उस छल का मुख था। |
14:18, 6 मार्च 2011 के समय का अवतरण
वेदना गीत
(प्रेम का मार्मिक चित्रण)
हो गये अब प्राण परिचित वेदने, तुमसे ,
मिल गया उर एक विरही, विरहणी तुमसे।
तुम गई घर-घर किसी का उर प्रणय पाने,
तुम फिरी वन-वन द्रुमों का आश्रय पाने,
जिस तरह मुझको जगत में प्रेम मिल पाया नहीं।
उस तरह ही तो तुम्हारा भी हृदय खिल पाया नहीं।
वैदने , दुख के नगर में वह करूण परिचय,
जब दृगों में हो निराशापुर्ण धन-संचय ।
सुख मैं जिसे समझता था वह दारूण दुख था,
निश्छल सा देखा मैने उस छल का मुख था।
प्रकट हो गयी अब यथार्थता उसकी सारी,
विजय नहीं थी वह थी हार बहुत सारी।
( वेदना गीत कविता का अंश)