भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"प्राण कोकिल / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= चन्द्रकुंवर बर्त्वाल }} {{KKCatKavita}} <poem> '''प्राण कोकिल'''…)
 
 
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार= चन्द्रकुंवर बर्त्वाल  
 
|रचनाकार= चन्द्रकुंवर बर्त्वाल  
 +
|संग्रह=जीतू / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल
 
}}
 
}}
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}
 
<poem>
 
<poem>
'''प्राण कोकिल'''
+
'''कविता का एक अंश ही उपलब्ध है । शेषांश आपके पास हो तो कृपया जोड़ दें या कविता कोश टीम को भेज दें'''
(प्रेम भावना का चित्रण )
+
ऐ मेरे प्राणों की कोकिल  
+
ऐ मेरे प्राणों की कोकिल  
 
कूको ! कूको! कूको  
 
कूको ! कूको! कूको  
 
पुलकित कर दो सारे जग को  
 
पुलकित कर दो सारे जग को  
इस मधुवन के प्रियपग पग को  
+
इस मधुवन के प्रिय पग-पग को  
 
कंपित स्वर से आज लुभा दो  
 
कंपित स्वर से आज लुभा दो  
इस मधुवन के सरस विहाग को  
+
इस मधुवन के सरस विहग को  
 
रसमाती पुलकित हो कोकिल  
 
रसमाती पुलकित हो कोकिल  
ऐरी कुछ तो बोलो  
+
ऐ री कुछ तो बोलो  
 
ऐ मेरे अन्तर की कोकिल  
 
ऐ मेरे अन्तर की कोकिल  
बेालो! बेलो! बोलो !
+
बोलो! बोलो! बोलो !
(प्राण कोकिल कविता का अंश)
+
 
</poem>
 
</poem>

21:16, 7 मार्च 2011 के समय का अवतरण

कविता का एक अंश ही उपलब्ध है । शेषांश आपके पास हो तो कृपया जोड़ दें या कविता कोश टीम को भेज दें
 
ऐ मेरे प्राणों की कोकिल
कूको ! कूको! कूको
पुलकित कर दो सारे जग को
इस मधुवन के प्रिय पग-पग को
कंपित स्वर से आज लुभा दो
इस मधुवन के सरस विहग को
रसमाती पुलकित हो कोकिल
ऐ री कुछ तो बोलो
ऐ मेरे अन्तर की कोकिल
बोलो! बोलो! बोलो !