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{{KKRachna
|रचनाकार= चन्द्रकुंवर बर्त्वाल
|संग्रह=जीतू / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल
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<poem>
नीला देवदार का वन है।
जिस पर मोहित हुआ पावन है।पवन है ।
छाया के अधरों पर झुक कर,
तरूवर करते मृदु-मृदु मर्मर,
हिमगिरि में निदाध फैला है,
सुखा रहीं हरिणियां हरिणियाँ बदन हैं,नीला देवदार का वन है,।
तोड़ हृदय की स्तब्ध अधिरता,
पर्वत चीर विमुक्त जल गिरता,
रूक दर्पण बन,
किसलय वन की परियों के लखता आनन है,
नीला देवदार का वन है।है । आधे ढंके ढँके चमन से लोचन,
घुटनों पर तिरछा है आनन,
शिथिलित भौंहे, पिच्छल बांहेंबाँहें, घन अलकों में बांधे बंधन बाँधे बँधन है,नीला देवदार का वन है।है । कांप काँप उठा हरिणी का यौवन,हिलने लगा उठा बांहें बाँहें वन,पवन प्रपीड़ित लतिका- तन पर,किसका यह करती चिन्तन है।है
नीला देवदार का वन है।
</poem>