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"पनघटों पर धूल / हरीश निगम" के अवतरणों में अंतर
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20:47, 8 मार्च 2011 के समय का अवतरण
गाँव अब
लगते नहीं हैं
गाँव से!
पनघटों में धूल
सूने खेत
घूमते अमराइयों में प्रेत,
आ रही लू, नीम वाली
छाँव से!
ठूँठ अपनापन झरे
मन-पात
कोयलों पर बाज की है घात,
धूप के हैं थरथराते
पाँव से!
खाँसते
आँगन हवा में टीस
कब्र में डूबे घुने आशीष,
लोग हैं हारे हुए हर
दाँव से।