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"यहाँ अब शोर ही कोई न सरगोशी किसी की / नोमान शौक़" के अवतरणों में अंतर

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20:35, 9 मार्च 2011 के समय का अवतरण

यहाँ अब शोर ही कोई न सरगोशी किसी की
अगर कुछ है तो शायद हो यह ख़ामोशी किसी की

बिला - नागा उसे खून आदमी का चाहिए अब
हमें खलने लगी है यह बलानोशी किसी की

वो कब्रिस्तान का नक्शा ही रख देंगे बदलकर
किसी की ताजपोशी है तो गुलपोशी किसी की

गली में फिर वही परछाइयाँ लहरा रही हैं
मेरी आहट से कब टूटी है बेहोशी किसी की

यहाँ गिरते हैं हरदम टूट कर शाखों से पत्ते
फिजा में गूंजती रहती है सरगोशी किसी की