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"बात बस से निकल चली है / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़" के अवतरणों में अंतर

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दर्द की रात ढल चली है
 
दर्द की रात ढल चली है
  
रचनाकाल : 21 नवंबर 1953, मांटगोमरी जेल
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'''21 नवंबर 1953, मांटगोमरी जेल'''
 
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23:18, 9 मार्च 2011 का अवतरण

बात बस से निकल चली है
दिल की हालत सँभल चली है

जब जुनूँ हद से बढ़ चला है
अब तबीअ'त बहल चली है

अश्क़ ख़ूँनाब हो चले हैं
ग़म की रंगत बदल चली है

या यूँ ही बुझ रही हैं शमएँ
या शबे-हिज़्र टल चली है

लाख पैग़ाम हो गये हैं
जब सबा एक पल चली है

जाओ, अब सो रहो सितारो
दर्द की रात ढल चली है

21 नवंबर 1953, मांटगोमरी जेल