भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"विनयावली / तुलसीदास / पृष्ठ 23" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} Category:लम्बी रचना {{KKPageNavigation |पीछे=व…)
 
पंक्ति 13: पंक्ति 13:
 
'''पद 221 से 230 तक'''
 
'''पद 221 से 230 तक'''
  
तुलसी प्रभु  
+
(225)
 +
भरोसो और आइहै उर ताके।
 +
कै कहुँ लहै जो रामहि-सो साहिब, कै अपनो बल जाके।।
 +
कै कलिकाल कराल न सूझत, मोह-मार-मद छाके।
 +
कै सुनि स्वामि-सुभाउ न रह्यो चित जो हित सब अंग थाके।।
 +
हौं जानत भलिभाँति अपनपो, प्रभु-सो सुन्यो न साके।
 +
उपल, भील,खग, मृग, रजनीचर, भले भये करतब काके।।
 +
मोको भलो राम-नाम सुरतरू-सो रामप्रसाद कृपालु कृपाके।
 +
तुलसी सुखी निसोच राज ज्यों बालक माय-बबाके।।
  
 
</poem>
 
</poem>

13:48, 10 मार्च 2011 का अवतरण

पद 221 से 230 तक

(225)
भरोसो और आइहै उर ताके।
कै कहुँ लहै जो रामहि-सो साहिब, कै अपनो बल जाके।।
कै कलिकाल कराल न सूझत, मोह-मार-मद छाके।
कै सुनि स्वामि-सुभाउ न रह्यो चित जो हित सब अंग थाके।।
हौं जानत भलिभाँति अपनपो, प्रभु-सो सुन्यो न साके।
उपल, भील,खग, मृग, रजनीचर, भले भये करतब काके।।
मोको भलो राम-नाम सुरतरू-सो रामप्रसाद कृपालु कृपाके।
तुलसी सुखी निसोच राज ज्यों बालक माय-बबाके।।