भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"पितृपक्ष / गणेश पाण्डेय" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गणेश पाण्डेय |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> जैसे रिक्शेवा…) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=गणेश पाण्डेय | |रचनाकार=गणेश पाण्डेय | ||
− | |संग्रह= | + | |संग्रह=जापानी बुख़ार / गणेश पाण्डेय |
}} | }} | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} |
23:49, 10 मार्च 2011 के समय का अवतरण
जैसे रिक्शेवाले भाई ने किया याद
पूछा जैसे जूतों की मरम्मत करनेवाले ने
जैसे दिया जल-अक्षत सामनेवाले भाई ने
जैसे दिया ज्ञानियों ने
और कम ज्ञानियों ने
जैसे किया याद
अड़ोस-पड़ोस और गाँव-जवार ने
अपने-अपने पितरों को
मैंने भी किया याद
पिता को और पिता की उँगली को
बुआ को और बुआ की गोद को
और उसकी खूँट में बँधी दुअन्नी को
सिर से पैर तक माँ को
माँ के आँचल के मोतीचूर को
मामा को और मामा के कंधे को
दादी को और दादी की छड़ी को
अनुभव की चहारदीवारी में
और याद की चटाई पर
आते गए जो भी आप से आप
मैंने सबको किया याद
जिन्हें देखा और जिन्हें नहीं देखा
जैसे ठेलेवाले भाई ने किया याद
जैसे याद किया नाई ने
मैंने भी जल्दी-जल्दी खाली कराया
पितरों के बैठने के लिए अपना सिर ।