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+ | बाजिमेध कब कियो अजामिल, गज गायो कब सामको। | ||
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+ | नाम-नरेस-प्रताप प्रबल जग, जुग-जुग चालत चामको।। | ||
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12:58, 11 मार्च 2011 का अवतरण
पद 91 से 100 तक
(91)
नचत ही निसि-दिवस मर्यो।
तब ही ते न भयो हरि थिर जबतें जिव नाम धर्यो।।
बहु बासना बिबिध कुचुकि भूषन लोभादि भर्यो।
चय अरू अचर गगन जल थल मे, कौन न स्वाँग कर्यो।
देव-दनुज, मुनि,नाग, मनुज नहिं जाँचत कोउ हर्यो।।
थके नयन, पद, पानि, सुमति, बल, संग सकल बिछुर्यो।
अब रघुनाथ सरन आयो, भव-भय बिकल डर्यो।।
जेहि गुनतें बस होहु रीझि करि, सो मोहि सब बिसर्यो।
तुलसिदास निज भवन-द्वार प्रभु दीजै रहन पर्यो।।
(99)
श्री बिरद गरीब निवाज रामको।
गावत बेद-पुरान, संभु-सुक, प्रगट प्रभाउ नामको।
ध्रुव, प्रह्लाद, विभीषन, कपिपति, जड़ पतंग,पांडव, सुदामको।
लोक सुजस परलोक सुगति, इन्हमें को है राम कामको।।
गनिका, कोल, किरात, आबिकब इन्हते अधिक बाम को।
बाजिमेध कब कियो अजामिल, गज गायो कब सामको।
छली, मलीन, हीन सब ही अँग, तुलसी सो छीन छामको।
नाम-नरेस-प्रताप प्रबल जग, जुग-जुग चालत चामको।।