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"विनयावली / तुलसीदास / पृष्ठ 23" के अवतरणों में अंतर
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भरोसो और आइहै उर ताके।    | भरोसो और आइहै उर ताके।    | ||
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कै कहुँ लहै जो रामहि-सो साहिब, कै अपनो बल जाके।।    | कै कहुँ लहै जो रामहि-सो साहिब, कै अपनो बल जाके।।    | ||
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कै कलिकाल कराल न सूझत, मोह-मार-मद छाके।    | कै कलिकाल कराल न सूझत, मोह-मार-मद छाके।    | ||
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कै सुनि स्वामि-सुभाउ न रह्यो चित जो हित सब अंग थाके।।    | कै सुनि स्वामि-सुभाउ न रह्यो चित जो हित सब अंग थाके।।    | ||
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हौं जानत भलिभाँति अपनपो, प्रभु-सो सुन्यो न साके।    | हौं जानत भलिभाँति अपनपो, प्रभु-सो सुन्यो न साके।    | ||
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उपल, भील,खग, मृग, रजनीचर, भले भये करतब काके।।    | उपल, भील,खग, मृग, रजनीचर, भले भये करतब काके।।    | ||
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मोको भलो राम-नाम सुरतरू-सो रामप्रसाद कृपालु कृपाके।    | मोको भलो राम-नाम सुरतरू-सो रामप्रसाद कृपालु कृपाके।    | ||
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तुलसी सुखी निसोच राज ज्यों बालक माय-बबाके।।  | तुलसी सुखी निसोच राज ज्यों बालक माय-बबाके।।  | ||
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14:27, 11 मार्च 2011 का अवतरण
पद 221 से 230 तक
(225)
भरोसो और आइहै उर ताके। 
कै कहुँ लहै जो रामहि-सो साहिब, कै अपनो बल जाके।। 
कै कलिकाल कराल न सूझत, मोह-मार-मद छाके। 
कै सुनि स्वामि-सुभाउ न रह्यो चित जो हित सब अंग थाके।। 
हौं जानत भलिभाँति अपनपो, प्रभु-सो सुन्यो न साके। 
उपल, भील,खग, मृग, रजनीचर, भले भये करतब काके।। 
मोको भलो राम-नाम सुरतरू-सो रामप्रसाद कृपालु कृपाके। 
तुलसी सुखी निसोच राज ज्यों बालक माय-बबाके।।
	
	