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"विनयावली / तुलसीदास / पृष्ठ 24" के अवतरणों में अंतर
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ऐसेहि जनम-समूह सिराने। | ऐसेहि जनम-समूह सिराने। | ||
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प्राणनाथ रघुनाथ-से प्रभु तजि सेवत चरन बिराने।। | प्राणनाथ रघुनाथ-से प्रभु तजि सेवत चरन बिराने।। | ||
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जे जड़ जीव कुटिल, कायर, खल, केवल कलिमल-साने। | जे जड़ जीव कुटिल, कायर, खल, केवल कलिमल-साने। | ||
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सूखत बदन प्रसंसत तिन्ह कहँ, हरितें अधिक करि माने।। | सूखत बदन प्रसंसत तिन्ह कहँ, हरितें अधिक करि माने।। | ||
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सुख हित कोटि उपाय निरंतर करत न पायँ पिराने। | सुख हित कोटि उपाय निरंतर करत न पायँ पिराने। | ||
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सदा मलीन पंथके जल ज्यों, कबहूँ न हृदय थिराने।। | सदा मलीन पंथके जल ज्यों, कबहूँ न हृदय थिराने।। | ||
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यह दीनता दूर करिबेको अमित जतन उर आने। | यह दीनता दूर करिबेको अमित जतन उर आने। | ||
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तुलसी चित-चिंता न मिटै बिनु चिंतामनि पहिचाने।। | तुलसी चित-चिंता न मिटै बिनु चिंतामनि पहिचाने।। | ||
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14:28, 11 मार्च 2011 का अवतरण
पद 231 से 240 तक
(235)
ऐसेहि जनम-समूह सिराने।
प्राणनाथ रघुनाथ-से प्रभु तजि सेवत चरन बिराने।।
जे जड़ जीव कुटिल, कायर, खल, केवल कलिमल-साने।
सूखत बदन प्रसंसत तिन्ह कहँ, हरितें अधिक करि माने।।
सुख हित कोटि उपाय निरंतर करत न पायँ पिराने।
सदा मलीन पंथके जल ज्यों, कबहूँ न हृदय थिराने।।
यह दीनता दूर करिबेको अमित जतन उर आने।
तुलसी चित-चिंता न मिटै बिनु चिंतामनि पहिचाने।।