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+ | प्रकटि जनाई, कियो दुरित-दुराउ मैं। | ||
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+ | राग रोष द्वेष पोषे, गोगन समेत मन, | ||
+ | इनकी भगति कीन्हीं इनही को भाउ मैं। | ||
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+ | आगिली-पाछिली, अबहूँकी अनुमान ही तें। | ||
+ | बूझियत गति, कछु कीन्हो तो न काउ मैं। | ||
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+ | जग कहै रामकी प्रतीति-प्रीति तुलसी हू, | ||
+ | झूठे -साँचे आसरो साहब रघुराउ मैं।। | ||
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+ | श्री नाथ नीके कै जानिबी ठीक जन-जीयकी। | ||
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+ | रावरो भरोसो नाह कै सु-प्रेम-नेम लियो, | ||
+ | रूचिर रहनि रूचि मति गति तीयकी।। | ||
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+ | कुकृत -सुकृत बस सब ही सों संग पर्यो, | ||
+ | परखी पराई गति, आपने हूँ कीयकी।। | ||
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+ | मेरे भलेको गोसाईं! पेचको, न सोच -संक, | ||
+ | हौहुँ किये कहौं सौंह साँची सीय-पीयकी।। | ||
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+ | ग्यानहू-गिराके स्वामी, बाहर-अंतरजामी, | ||
+ | यहाँ क्यों दुरैगी बात मुखकी औ हीयकी? | ||
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+ | तुलसी तिहारो, तुमहीं पै तुलसीके हित, | ||
+ | राखि कहौं हौं तो जो पै ह्वहौं माखी घीयकी।। | ||
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17:04, 12 मार्च 2011 का अवतरण
पद 261 से 270 तक
(261)
श्री मेरी न बनै बनाये मेरे कोटि कलप लौं,
राम! रावरे बनाये बनै पल पाउ मैं ।
निपट सयाने हौ कृपानिधान! कहा कहौं?
लिये बेर बदलि अमोल मनि आउ मैं।।
मानस मलीन, करतब कलिमल पीन
जीह हू न जप्यो नाम, बक्यो आउ-बाउ मैं।
कुपथ कुचाल चल्यो, भयो न भूलिहू भलो,
बाल-दसा हू न खेल्यो खेलत सुदाउ मैं।।
देखा-देखी दंभ तें कि संग तें भई भलाई,
प्रकटि जनाई, कियो दुरित-दुराउ मैं।
राग रोष द्वेष पोषे, गोगन समेत मन,
इनकी भगति कीन्हीं इनही को भाउ मैं।
आगिली-पाछिली, अबहूँकी अनुमान ही तें।
बूझियत गति, कछु कीन्हो तो न काउ मैं।
जग कहै रामकी प्रतीति-प्रीति तुलसी हू,
झूठे -साँचे आसरो साहब रघुराउ मैं।।
(263)
श्री नाथ नीके कै जानिबी ठीक जन-जीयकी।
रावरो भरोसो नाह कै सु-प्रेम-नेम लियो,
रूचिर रहनि रूचि मति गति तीयकी।।
कुकृत -सुकृत बस सब ही सों संग पर्यो,
परखी पराई गति, आपने हूँ कीयकी।।
मेरे भलेको गोसाईं! पेचको, न सोच -संक,
हौहुँ किये कहौं सौंह साँची सीय-पीयकी।।
ग्यानहू-गिराके स्वामी, बाहर-अंतरजामी,
यहाँ क्यों दुरैगी बात मुखकी औ हीयकी?
तुलसी तिहारो, तुमहीं पै तुलसीके हित,
राखि कहौं हौं तो जो पै ह्वहौं माखी घीयकी।।