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"मेरे दर्द को जो ज़बाँ मिले / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़" के अवतरणों में अंतर
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03:30, 13 मार्च 2011 का अवतरण
मेरा दर्द नग़मा-ए-बे-सदा<ref>बे-आवाज़ गीत</ref>
मेरी ज़ात<ref>अस्तित्व</ref> ज़र्रा-ए-बे-निशाँ<ref>बे-निशान कण</ref>
मेरे दर्द को जो ज़बाँ मिले
मुझे अपना नामो-निशाँ मिले
मेरी ज़ात को जो निशाँ मिले
मुझे राज़े-नज़्मे-जहाँ<ref>विश्व-व्यवस्था का रहस्य</ref> मिले
जो मुझे ये राज़े-निहाँ<ref>छुपा हुआ</ref> मिले
मेरी ख़ामशी को बयाँ मिले
मुझे क़ायनात की सरवरी<ref>दुनिया की बादशाही</ref>
मुझे दौलते-दो-जहाँ<ref>दोनों दुनियाओं की दौलत</ref> मिले
शब्दार्थ
<references/>