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आनंद गुप्ता<br>- - - - - - - - - - - - - - - - - - - - <br> कवि - अहमद फ़राज़ / <br>बुझी नज़र तो करिश्मे भी रोज़ो शब के गये / <br> के अब तलक नही पलटे हैं लोग कब के गये//<br>करेगा कौन तेरी बेवफ़ाइयों का गिला /<br>यही है रस्मे ज़माना तो हम भी अब के गये //<br>मगर किसी ने हमे हमसफ़र नही जाना / <br> ये और बात के हम साथ साथ सब के गये //<br>अब आये हो तो यहाँ क्या है देखने के लिये / <br> ये शहर कब से है वीरां वो लोग कब के गये //<br>गिरफ़्ता दिल थे मगर हौसला नही हारा / <br> गिरफ़्ता दिल हैं मगर हौसले भी अब के गये //<br>तुम अपनी शम्ऐ-तमन्ना को रो रहे हो "फ़राज़" / <br> इन आँधियों मे तो प्यारे चिराग सब के गये//<br>--- --- प्रेषक - संजीव द्विवेदी ------<br>
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