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"इस शहर-ए-खराबी में / हबीब जालिब" के अवतरणों में अंतर
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कुछ और भी हैं काम हमें ए गम-ए-जानां | कुछ और भी हैं काम हमें ए गम-ए-जानां | ||
कब तक कोई उलझी हुई ज़ुल्फ़ों को सँवारे | कब तक कोई उलझी हुई ज़ुल्फ़ों को सँवारे | ||
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21:19, 14 मार्च 2011 के समय का अवतरण
इस शहर-ए-खराबी में गम-ए-इश्क के मारे
ज़िंदा हैं यही बात बड़ी बात है प्यारे
ये हंसता हुआ लिखना ये पुरनूर सितारे
ताबिंदा-ओ-पा_इन्दा हैं ज़र्रों के सहारे
हसरत है कोई गुंचा हमें प्यार से देखे
अरमां है कोई फूल हमें दिल से पुकारे
हर सुबह मेरी सुबह पे रोती रही शबनम
हर रात मेरी रात पे हँसते रहे तारे
कुछ और भी हैं काम हमें ए गम-ए-जानां
कब तक कोई उलझी हुई ज़ुल्फ़ों को सँवारे