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"एक मुठ्ठी जलती राख / चंद्र रेखा ढडवाल" के अवतरणों में अंतर
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07:53, 15 मार्च 2011 के समय का अवतरण
इच्छा और असामर्थ्य की
जंग में पिसते देख
दया या घृणा से ज़्यादा
जुगुप्सा में भर उठती औरत
जवान हाथों से बूढ़ी काया सहेजते
वमन नकारती
पहाड़ भर मिट्टी
उँडेल देना चाहती है
कुचेष्टाओं पर
खुले अंगों पर
या कम से कम एक मुठ्ठी जलती राख
निगलने को आती आँखों में