"अब ‘विनय’ तेरे ग़म से ग़ाफ़िल नहीं रहा/ विनय प्रजापति 'नज़र'" के अवतरणों में अंतर
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अब ‘विनय’ तेरे ग़म से ग़ाफ़िल नहीं रहा | अब ‘विनय’ तेरे ग़म से ग़ाफ़िल नहीं रहा | ||
− | देख तो | + | देख तो वह मग़रूर संगदिल नहीं रहा |
− | हमें | + | हमें शिबासी दो कि तेरा राज़ न खोला |
− | पर जानाँ | + | पर जानाँ आज से मैं बातिल नहीं रहा |
− | तेरी कही सुनी सब मुझे वक़्त ने भुला दी | + | तेरी कही-सुनी सब मुझे वक़्त ने भुला दी |
− | ये ग़ैर | + | ये ग़ैर अब दुश्मनी के क़ाबिल नहीं रहा |
हमें जब नाज़ थे तो ये दर्द किसलिए हैं | हमें जब नाज़ थे तो ये दर्द किसलिए हैं | ||
− | तेरे बाद कोई | + | तेरे बाद कोई रुख़ मुस्तक़िल नहीं रहा |
− | + | वह बेरंग शाम-ए-माज़ी की तन्हाई | |
− | कभी | + | कभी वो इतना दिल में दाख़िल नहीं रहा |
− | तुमने ख़ुद | + | तुमने ख़ुद मुझको दोस्त बनाया होता |
− | तुम्हें तो | + | तुम्हें तो कभी कुछ भी मुश्किल नहीं रहा |
हमसे एक-एक कर सब हाथ छूटते गये | हमसे एक-एक कर सब हाथ छूटते गये | ||
− | मेरे कूचे में | + | मेरे कूचे में माहे-कामिल<ref>पूर्णिमा का चाँद</ref> नहीं रहा |
सद्-हैफ़ो-अफ़सोस से कलेजा भर आया | सद्-हैफ़ो-अफ़सोस से कलेजा भर आया | ||
हाए मुझे सिवा ग़म कुछ हासिल नहीं रहा | हाए मुझे सिवा ग़म कुछ हासिल नहीं रहा | ||
− | + | ख़ुदा मुझे दे ताक़ते-नज़्ज़ाराए-हुस्न | |
− | सुना | + | सुना है मेरी राह में हाइल<ref>बाधक</ref> नहीं रहा |
− | साँसों का धुँआ दिल को दर्द | + | साँसों का धुँआ दिल को दर्द दे रहा है |
− | ज़िन्दगी में बाइसे-मसाइल नहीं रहा | + | ज़िन्दगी में बाइसे-मसाइल<ref>कठिनाइयों का कारण</ref> नहीं रहा |
− | वो गुफ़्त-गू वो मशविरे वो बयान | + | वो गुफ़्त-गू वो मशविरे वो बयान, ख़ुदा... |
− | ख़ुदा | + | तेरे ज़ख़्म देखे तो मैं बिस्मिल<ref>घायल</ref> नहीं रहा |
− | गर्दिशे-अय्याम की रवानी देखकर | + | गर्दिशे-अय्याम की रवानी को देखकर |
− | मेरा दिले-सौदा | + | मेरा ये दिले-सौदा मुज़महिल<ref>निष्तेज</ref> नहीं रहा |
− | अब इस चमन में फिरती है खुश्क सबा | + | अब तो इस चमन में फिरती है खुश्क सबा |
− | मस्जूदा कोई जल्वाए-गुल नहीं रहा | + | मस्जूदा, कोई जल्वाए-गुल नहीं रहा |
− | किसके दिन उम्रभर एक से रहते हैं | + | हाँ, किसके दिन उम्रभर एक से रहते हैं |
− | मुझमें तो वह हुस्ने-अमल नहीं रहा | + | मुझमें तो अब वह हुस्ने-अमल नहीं रहा |
− | मेरी | + | मेरी काविश<ref>प्रयास</ref> का किसी राह तो हासिल है |
− | हैफ़ मेरे ग़म की | + | हैफ़ वह मेरे ग़म की मंज़िल नहीं रहा |
− | + | बता अहदे-ज़ीस्त<ref>जीवन साथ बिताने का वचन</ref> करके किससे तोड़ूँ | |
− | मुझे तफ़रकाए-नाक़िसो-कामिल नहीं रहा | + | मुझे तफ़रकाए-नाक़िसो-कामिल<ref>पूर्णता व अपूर्णता का भेद</ref> नहीं रहा |
− | मुझे तुम | + | मुझे तुम छोड़ के गये लेकिन क्या बताऊँ |
− | एक अरसा बर्क़े-सोज़े-दिल नहीं रहा | + | एक अरसा बर्क़े-सोज़े-दिल<ref>दिल के दर्द के बादल की बिजली</ref> नहीं रहा |
− | तुमको जाना है तो जाओ कब | + | तुमको जाना है तो जाओ कब रोका है |
− | + | इस फ़ुर्क़त का ग़म मुझे बिल्कुल नहीं रहा | |
− | इस दरया को ख़्वाहिश है समंदर की | + | तेरे इस दरया को ख़्वाहिश है समंदर की |
− | और | + | और अब्र<ref>बादल</ref> का बरसना मुसलसल<ref>लगातर</ref> नहीं रहा |
− | सू-ए-शिर्क सजदे-मस्जूद किये मैंने | + | सू-ए-शिर्क सजदे-मस्जूद किये हैं मैंने |
− | + | कि मैं तेरे कूचे का माइल<ref>अनुरक्त, आसक्त</ref> नहीं रहा | |
अब किससे करूँगा उसकी जफ़ा का शिकवा | अब किससे करूँगा उसकी जफ़ा का शिकवा | ||
− | + | अब कोई दराज़ दस्तिए-क़ातिल नहीं रहा | |
− | इस ज़र्फ़ कोई आये | + | इस ज़र्फ़<ref>तरफ़</ref> कोई आये देखे हाल मेरा |
− | वो पुरसिशे-जराहते- | + | अब वो पुरसिशे-जराहते-दिल<ref>दिल के ज़ख़्म का हाल पूछने वाला </ref> नहीं रहा |
अच्छा हुआ तुमने रोज़े-आख़िर न बोला | अच्छा हुआ तुमने रोज़े-आख़िर न बोला | ||
− | रोज़े-विदा | + | बाद रोज़े-विदा उक़्दाए-दिल<ref>दिल की गाँठ, जिसे याद करके मन दुखी हो</ref> नहीं रहा |
− | + | दुख गिनते-गिनते ये उम्र कट जायेगी | |
− | किसी की इनायत | + | किसी की इनायत वो तग़ाफ़ुल<ref>बातचीत</ref> नहीं रहा |
− | फ़िज़ा क्यों इतनी ख़ामोश है गुलशन में | + | ये फ़िज़ा क्यों इतनी ख़ामोश है गुलशन में |
क्या आशियाँ में नालाए-बुलबुल नहीं रहा | क्या आशियाँ में नालाए-बुलबुल नहीं रहा | ||
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दिल मुझे ख़्याले-यारे-वस्ल नहीं रहा | दिल मुझे ख़्याले-यारे-वस्ल नहीं रहा | ||
− | मैं जिसको दोस्त कह नहीं सकता अब | + | दिल, मैं जिसको दोस्त कह नहीं सकता अब |
− | + | उसके लिए मुझमें जज़्बाए-दिल नहीं रहा | |
− | + | किसे खरोंचे हो अपने नाख़ून से तुम | |
− | इस सीने में | + | इस सीने में वो जराहते-दिल नहीं रहा |
− | + | उर्दि-ओ-दै का अब मैं क्या ख़्याल रखूँ | |
ये कैसी जलन, मुझे तपिशे-दिल नहीं रहा | ये कैसी जलन, मुझे तपिशे-दिल नहीं रहा | ||
− | अपनी यकताई | + | मुझे अपनी यकताई<ref>जिसके जैसा कोई दूसरा न हो, ऐसा महान</ref> पे बेहद नाज़ था |
− | आज भी है लेकिन वो | + | आज भी है लेकिन वो मुक़ाबिल नहीं रहा |
− | अब भी खिलती है शुआहाए-ख़ुर-फ़ज़िर | + | दिल, अब भी खिलती है शुआहाए-ख़ुर-फ़ज़िर |
− | मगर फ़िज़ा में शाहिद-ए-गुल नहीं रहा | + | मगर फ़िज़ा में वो शाहिद-ए-गुल नहीं रहा |
− | + | ढूँढ़ा मैंने उसके जैसा, न पाया एक | |
− | वो नमकपाशे-ख़राशे-दिल नहीं रहा | + | सच वो नमकपाशे-ख़राशे-दिल नहीं रहा |
− | अब ख़ुल्द में रहें या दोज़ख में रहें हम | + | अब ख़ुल्द<ref>स्वर्ग</ref> में रहें या दोज़ख<ref>नरक</ref> में रहें हम |
− | ऐ सनम मेरा तो आबो- | + | ऐ सनम मेरा तो आबो-गिल<ref>शरीर और आकार</ref> नहीं रहा |
− | उस फ़ितनाख़ेज़ का नहीं अब डर | + | उस फ़ितनाख़ेज़<ref>मुश्किलें लाने वाला</ref> का नहीं है अब डर मुझे |
− | कि मेरे दिल में स’इ-ए- | + | कि मेरे दिल में स’इ-ए-बेहासिल<ref>निष्फल प्रयत्न</ref> नहीं रहा |
− | आँखों से निक़ाब | + | आँखों से निक़ाब हटा दो कि हर वहम खुले |
− | + | आज तुझमें वो तर्ज़े-तग़ाफ़ुल नहीं रहा | |
− | कहने को | + | कहने को ज़ामिन नहीं मुझसा ज़माने में |
− | + | मगर जाने क्यों मुझे तहम्मुल<ref>दिल की घबराहट, सहनशक्ति</ref> नहीं रहा | |
− | वो जिसकी चाप से धड़कनें रुक जायें थीं | + | वो जिसकी चाप<ref>क़दमों की आहट</ref> से धड़कनें रुक जायें थीं |
− | ज़िन्दगी में वो हौले-दिल नहीं रहा | + | मेरी ज़िन्दगी में वो हौले-दिल नहीं रहा |
ऐ लोगों मैं ख़ुद को किस ज़ात का बताऊँ | ऐ लोगों मैं ख़ुद को किस ज़ात का बताऊँ | ||
− | सुना है तुममें | + | सुना है तुममें कुछ दीनो-दिल नहीं रहा |
− | दायम अपने बग़ल में पाओगे तुम | + | दायम<ref>सदैव</ref> अपने बग़ल में पाओगे तुम हमें |
− | + | कह भी लो मैं तुझमें मुश्तमिल<ref>शामिल</ref> नहीं रहा | |
− | क्यों है | + | क्यों है मुझे तेरे रूठ कर जाने का ग़म |
− | जबकि | + | जबकि मैं कभी भी तेरा काइल नहीं रहा |
कहता तो हूँ बात दिल की मगर क्या करूँ | कहता तो हूँ बात दिल की मगर क्या करूँ | ||
− | मेरा | + | मेरा ख़्याल अब मानिन्दे-गुल नहीं रहा |
− | + | ख़ामोश आँखों में अयाँ थीं बातें दिल की | |
वो चाहकर भी कभी सू-ए-दिल नहीं रहा | वो चाहकर भी कभी सू-ए-दिल नहीं रहा | ||
− | किया जो मैंने तुम्हें अपना | + | किया जो मैंने तुम्हें अपना समझ किया |
− | ये दिल तेरी जफ़ा से | + | ये दिल तेरी जफ़ा से मुनफ़’इल<ref>लज्जित</ref> नहीं रहा |
− | मैंने देखा था | + | मैंने देखा था उसको ख़ुल्द जाते हुए |
वो हलाके-फ़रेब-वफ़ा-ए-गुल नहीं रहा | वो हलाके-फ़रेब-वफ़ा-ए-गुल नहीं रहा | ||
जो कभी साहिल पर था कभी समंदर में | जो कभी साहिल पर था कभी समंदर में | ||
− | उसको दाग़े-हसरते-दिल नहीं रहा | + | हाँ, उसको दाग़े-हसरते-दिल नहीं रहा |
जिसपे लिखा करते थे तुम अपना नाम | जिसपे लिखा करते थे तुम अपना नाम | ||
शख़्स वो आज गर्दे-साहिल नहीं रहा | शख़्स वो आज गर्दे-साहिल नहीं रहा | ||
− | आज | + | आज फ़ारिग<ref>निश्चिंत</ref> हूँ कि तुम्हीं हो मेरे ग़मख़्वार |
− | मैं हरीफ़े-मतलबे- | + | सो मैं हरीफ़े-मतलबे-मुश्किल<ref>कठिन काम कर लेने वाला</ref> नहीं रहा |
− | था तो थोड़ा बहुत मैं ये मानता हूँ | + | कुछ था तो थोड़ा बहुत मैं ये मानता हूँ पर |
आज उतना भी तो सोज़िशे-दिल नहीं रहा | आज उतना भी तो सोज़िशे-दिल नहीं रहा | ||
− | मैं दर्द को दिल से जुदा कर सकता हूँ | + | मैं दर्द को दिल से जुदा कर तो सकता हूँ |
− | पर फ़ुसूने-ख़्वाहिशे- | + | पर वो फ़ुसूने-ख़्वाहिशे-सैक़ल<ref>परिष्कृति की अभिलाषा का जादू</ref> नहीं रहा |
अब मैं किस मुँह से जाऊँ बज़्म में उसकी | अब मैं किस मुँह से जाऊँ बज़्म में उसकी | ||
− | ये दिल दरख़ुर-ए- | + | शैदा ये दिल दरख़ुर-ए-महफ़िल<ref>महफ़िल के योग्य</ref> नहीं रहा |
− | देखिए शाइबाए-ख़ूबिए- | + | देखिए शाइबाए-ख़ूबिए-तक़दीर<ref>सौभाग्य की झलक</ref> उसमें |
− | वो दिन | + | वो दिन गये और रोज़े-अजल नहीं रहा |
− | इश्क़ | + | इश्क़ भटकता था उस रोज़ गलियों-गलियों |
आज किसी में इतना भी ख़लल नहीं रहा | आज किसी में इतना भी ख़लल नहीं रहा | ||
− | बढ़के आया तो लगा तेरा तीर | + | बढ़के आया तो लगा तेरा तीर दिल में |
− | चारासाज़ न हुआ पर | + | चारासाज़ न हुआ पर जाँगुसिल<ref>जानलेवा, दुखदायी</ref> नहीं रहा |
− | किसपे | + | किसपे लिख भेजूँ मैं तुझे पयाम अपना |
− | पास औराक़े-लख़्ते-दिल नहीं रहा | + | अब पास औराक़े-लख़्ते-दिल नहीं रहा |
− | आस्माँ | + | उसे आस्माँ तक जाने की तमन्ना थी |
− | पर आइना-ए-बेमेहरि-ए- | + | पर आइना-ए-बेमेहरि-ए-क़ातिल<ref>माशूक़ की बेरहमी का सुबूत</ref> नहीं रहा |
− | मेरे मुँह से न | + | तू मेरे मुँह से न सुन वज्हे-सुखन ईसा |
ख़ुद गुलों में रंगे-अदा-ए-गुल नहीं रहा | ख़ुद गुलों में रंगे-अदा-ए-गुल नहीं रहा | ||
मगर टूटा है किसी का नाज़ुक दिल मुझसे | मगर टूटा है किसी का नाज़ुक दिल मुझसे | ||
− | ये डर कि मैं क़ाबिले-सुम्बुल नहीं रहा | + | ये डर कि मैं अब क़ाबिले-सुम्बुल नहीं रहा |
− | + | मेरा कोई रहनुमा नहीं रहे-इश्क़ में | |
− | तुम ख़ुश रहो | + | तुम ख़ुश रहो कि राह में साइल<ref>उम्मीदवार, प्रश्नकर्ता</ref> नहीं रहा |
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19:29, 15 मार्च 2011 के समय का अवतरण
लेखन वर्ष: 2005
अब ‘विनय’ तेरे ग़म से ग़ाफ़िल नहीं रहा
देख तो वह मग़रूर संगदिल नहीं रहा
हमें शिबासी दो कि तेरा राज़ न खोला
पर जानाँ आज से मैं बातिल नहीं रहा
तेरी कही-सुनी सब मुझे वक़्त ने भुला दी
ये ग़ैर अब दुश्मनी के क़ाबिल नहीं रहा
हमें जब नाज़ थे तो ये दर्द किसलिए हैं
तेरे बाद कोई रुख़ मुस्तक़िल नहीं रहा
वह बेरंग शाम-ए-माज़ी की तन्हाई
कभी वो इतना दिल में दाख़िल नहीं रहा
तुमने ख़ुद मुझको दोस्त बनाया होता
तुम्हें तो कभी कुछ भी मुश्किल नहीं रहा
हमसे एक-एक कर सब हाथ छूटते गये
मेरे कूचे में माहे-कामिल<ref>पूर्णिमा का चाँद</ref> नहीं रहा
सद्-हैफ़ो-अफ़सोस से कलेजा भर आया
हाए मुझे सिवा ग़म कुछ हासिल नहीं रहा
ख़ुदा मुझे दे ताक़ते-नज़्ज़ाराए-हुस्न
सुना है मेरी राह में हाइल<ref>बाधक</ref> नहीं रहा
साँसों का धुँआ दिल को दर्द दे रहा है
ज़िन्दगी में बाइसे-मसाइल<ref>कठिनाइयों का कारण</ref> नहीं रहा
वो गुफ़्त-गू वो मशविरे वो बयान, ख़ुदा...
तेरे ज़ख़्म देखे तो मैं बिस्मिल<ref>घायल</ref> नहीं रहा
गर्दिशे-अय्याम की रवानी को देखकर
मेरा ये दिले-सौदा मुज़महिल<ref>निष्तेज</ref> नहीं रहा
अब तो इस चमन में फिरती है खुश्क सबा
मस्जूदा, कोई जल्वाए-गुल नहीं रहा
हाँ, किसके दिन उम्रभर एक से रहते हैं
मुझमें तो अब वह हुस्ने-अमल नहीं रहा
मेरी काविश<ref>प्रयास</ref> का किसी राह तो हासिल है
हैफ़ वह मेरे ग़म की मंज़िल नहीं रहा
बता अहदे-ज़ीस्त<ref>जीवन साथ बिताने का वचन</ref> करके किससे तोड़ूँ
मुझे तफ़रकाए-नाक़िसो-कामिल<ref>पूर्णता व अपूर्णता का भेद</ref> नहीं रहा
मुझे तुम छोड़ के गये लेकिन क्या बताऊँ
एक अरसा बर्क़े-सोज़े-दिल<ref>दिल के दर्द के बादल की बिजली</ref> नहीं रहा
तुमको जाना है तो जाओ कब रोका है
इस फ़ुर्क़त का ग़म मुझे बिल्कुल नहीं रहा
तेरे इस दरया को ख़्वाहिश है समंदर की
और अब्र<ref>बादल</ref> का बरसना मुसलसल<ref>लगातर</ref> नहीं रहा
सू-ए-शिर्क सजदे-मस्जूद किये हैं मैंने
कि मैं तेरे कूचे का माइल<ref>अनुरक्त, आसक्त</ref> नहीं रहा
अब किससे करूँगा उसकी जफ़ा का शिकवा
अब कोई दराज़ दस्तिए-क़ातिल नहीं रहा
इस ज़र्फ़<ref>तरफ़</ref> कोई आये देखे हाल मेरा
अब वो पुरसिशे-जराहते-दिल<ref>दिल के ज़ख़्म का हाल पूछने वाला </ref> नहीं रहा
अच्छा हुआ तुमने रोज़े-आख़िर न बोला
बाद रोज़े-विदा उक़्दाए-दिल<ref>दिल की गाँठ, जिसे याद करके मन दुखी हो</ref> नहीं रहा
दुख गिनते-गिनते ये उम्र कट जायेगी
किसी की इनायत वो तग़ाफ़ुल<ref>बातचीत</ref> नहीं रहा
ये फ़िज़ा क्यों इतनी ख़ामोश है गुलशन में
क्या आशियाँ में नालाए-बुलबुल नहीं रहा
था तब मिला नहीं, खोकर मिलता है कौन
दिल मुझे ख़्याले-यारे-वस्ल नहीं रहा
दिल, मैं जिसको दोस्त कह नहीं सकता अब
उसके लिए मुझमें जज़्बाए-दिल नहीं रहा
किसे खरोंचे हो अपने नाख़ून से तुम
इस सीने में वो जराहते-दिल नहीं रहा
उर्दि-ओ-दै का अब मैं क्या ख़्याल रखूँ
ये कैसी जलन, मुझे तपिशे-दिल नहीं रहा
मुझे अपनी यकताई<ref>जिसके जैसा कोई दूसरा न हो, ऐसा महान</ref> पे बेहद नाज़ था
आज भी है लेकिन वो मुक़ाबिल नहीं रहा
दिल, अब भी खिलती है शुआहाए-ख़ुर-फ़ज़िर
मगर फ़िज़ा में वो शाहिद-ए-गुल नहीं रहा
ढूँढ़ा मैंने उसके जैसा, न पाया एक
सच वो नमकपाशे-ख़राशे-दिल नहीं रहा
अब ख़ुल्द<ref>स्वर्ग</ref> में रहें या दोज़ख<ref>नरक</ref> में रहें हम
ऐ सनम मेरा तो आबो-गिल<ref>शरीर और आकार</ref> नहीं रहा
उस फ़ितनाख़ेज़<ref>मुश्किलें लाने वाला</ref> का नहीं है अब डर मुझे
कि मेरे दिल में स’इ-ए-बेहासिल<ref>निष्फल प्रयत्न</ref> नहीं रहा
आँखों से निक़ाब हटा दो कि हर वहम खुले
आज तुझमें वो तर्ज़े-तग़ाफ़ुल नहीं रहा
कहने को ज़ामिन नहीं मुझसा ज़माने में
मगर जाने क्यों मुझे तहम्मुल<ref>दिल की घबराहट, सहनशक्ति</ref> नहीं रहा
वो जिसकी चाप<ref>क़दमों की आहट</ref> से धड़कनें रुक जायें थीं
मेरी ज़िन्दगी में वो हौले-दिल नहीं रहा
ऐ लोगों मैं ख़ुद को किस ज़ात का बताऊँ
सुना है तुममें कुछ दीनो-दिल नहीं रहा
दायम<ref>सदैव</ref> अपने बग़ल में पाओगे तुम हमें
कह भी लो मैं तुझमें मुश्तमिल<ref>शामिल</ref> नहीं रहा
क्यों है मुझे तेरे रूठ कर जाने का ग़म
जबकि मैं कभी भी तेरा काइल नहीं रहा
कहता तो हूँ बात दिल की मगर क्या करूँ
मेरा ख़्याल अब मानिन्दे-गुल नहीं रहा
ख़ामोश आँखों में अयाँ थीं बातें दिल की
वो चाहकर भी कभी सू-ए-दिल नहीं रहा
किया जो मैंने तुम्हें अपना समझ किया
ये दिल तेरी जफ़ा से मुनफ़’इल<ref>लज्जित</ref> नहीं रहा
मैंने देखा था उसको ख़ुल्द जाते हुए
वो हलाके-फ़रेब-वफ़ा-ए-गुल नहीं रहा
जो कभी साहिल पर था कभी समंदर में
हाँ, उसको दाग़े-हसरते-दिल नहीं रहा
जिसपे लिखा करते थे तुम अपना नाम
शख़्स वो आज गर्दे-साहिल नहीं रहा
आज फ़ारिग<ref>निश्चिंत</ref> हूँ कि तुम्हीं हो मेरे ग़मख़्वार
सो मैं हरीफ़े-मतलबे-मुश्किल<ref>कठिन काम कर लेने वाला</ref> नहीं रहा
कुछ था तो थोड़ा बहुत मैं ये मानता हूँ पर
आज उतना भी तो सोज़िशे-दिल नहीं रहा
मैं दर्द को दिल से जुदा कर तो सकता हूँ
पर वो फ़ुसूने-ख़्वाहिशे-सैक़ल<ref>परिष्कृति की अभिलाषा का जादू</ref> नहीं रहा
अब मैं किस मुँह से जाऊँ बज़्म में उसकी
शैदा ये दिल दरख़ुर-ए-महफ़िल<ref>महफ़िल के योग्य</ref> नहीं रहा
देखिए शाइबाए-ख़ूबिए-तक़दीर<ref>सौभाग्य की झलक</ref> उसमें
वो दिन गये और रोज़े-अजल नहीं रहा
इश्क़ भटकता था उस रोज़ गलियों-गलियों
आज किसी में इतना भी ख़लल नहीं रहा
बढ़के आया तो लगा तेरा तीर दिल में
चारासाज़ न हुआ पर जाँगुसिल<ref>जानलेवा, दुखदायी</ref> नहीं रहा
किसपे लिख भेजूँ मैं तुझे पयाम अपना
अब पास औराक़े-लख़्ते-दिल नहीं रहा
उसे आस्माँ तक जाने की तमन्ना थी
पर आइना-ए-बेमेहरि-ए-क़ातिल<ref>माशूक़ की बेरहमी का सुबूत</ref> नहीं रहा
तू मेरे मुँह से न सुन वज्हे-सुखन ईसा
ख़ुद गुलों में रंगे-अदा-ए-गुल नहीं रहा
मगर टूटा है किसी का नाज़ुक दिल मुझसे
ये डर कि मैं अब क़ाबिले-सुम्बुल नहीं रहा
मेरा कोई रहनुमा नहीं रहे-इश्क़ में
तुम ख़ुश रहो कि राह में साइल<ref>उम्मीदवार, प्रश्नकर्ता</ref> नहीं रहा