भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कवितावली/ तुलसीदास / पृष्ठ 14" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 12: | पंक्ति 12: | ||
<poem> | <poem> | ||
− | (मारीचानुधावन) | + | '''(मारीचानुधावन)''' |
पंक्ति 27: | पंक्ति 27: | ||
− | (इति अरण्य काण्ड ) | + | '''(इति अरण्य काण्ड )''' |
</poem> | </poem> |
12:30, 16 मार्च 2011 का अवतरण
(मारीचानुधावन)
पंचबटीं बर पर्नकुटी तर बैठे हैं रामु सुभायँ सुहाए।
सोहै प्रिया, प्रिय बंधु लसै ‘तलसी’ सब अंग घने छबि छाए।।
देखि मृगा मृगनैनी कहे प्रिय बेैन, ते प्रीतमके मन भाए।
हेमकुरंगके संग सरासनु सायकु लै रघुनायकु धाए।।
(इति अरण्य काण्ड )