भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"रहस्य / रामधारी सिंह "दिनकर"" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनकर }} {{KKCatKavita}} <poem> '''रहस्य''' तुम समझोगे बात हमारी? :::…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
15:14, 16 मार्च 2011 का अवतरण
रहस्य
तुम समझोगे बात हमारी?
[१]
उडु-पुंजों के कुंज सघन में,
भूल गया मैं पन्थ गगन में,
जगे-जगे, आकुल पलकों में बीत गई कल रात हमारी।
[२]
अस्तोदधि की अरुण लहर में,
पूरब-ओर कनक-प्रान्तर में,
रँग-सी रही पंख उड़-उड़कर तृष्णा सायं-प्रात हमारी।
[३]
सुख-दुख में डुबकी-सी देकर,
निकली वह देखो, कुछ लेकर,
श्वेत, नील दो पद्म करों में, सजनी सध्यःस्नात हमारी।