"संबल / रामधारी सिंह "दिनकर"" के अवतरणों में अंतर
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनकर }} {{KKCatKavita}} <poem> '''संबल''' सोच रहा, कुछ गा न रहा मैं…) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार=दिनकर | + | |रचनाकार=रामधारी सिंह "दिनकर" |
}} | }} | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | |||
− | |||
सोच रहा, कुछ गा न रहा मैं। | सोच रहा, कुछ गा न रहा मैं। | ||
22:42, 16 मार्च 2011 के समय का अवतरण
सोच रहा, कुछ गा न रहा मैं।
[१]
निज सागर को थाह रहा हूँ,
खोज गीत में राह रहा हूँ,
पर, यह तो सब कुछ अपने हित, औरों को समझा न रहा मैं।
[२]
वातायन शत खोल हृदय के,
कुछ निर्वाक खड़ा विस्मय से,
उठा द्वार-पट चकित झाँक अपनेपन को पहचान रहा मैं।
[३]
ग्रन्थि हृदय की खोल रहा हूँ,
उन्मन-सा कुछ बोल रहा हूँ,
मन का अलस खेल यह गुनगुन, सचमुच, गीत बना न रहा मैं।
[४]
देखी दृश्य-जगत की झाँकी,
अब आगे कितना है बाकी?
गहन शून्य में मग्न, अचेतन, कर अगीत का ध्यान रहा मैं।
[५]
चरण-चरण साधन का श्रम है,
गीत पथिक की शान्ति परम है,
ये मेरे संबल जीवन के, जग का मन बहला न रहा मैं।
[६]
एक निरीह पथिक निज मग का
मैं न सुयश-भिक्षुक इस जग का,
अपनी ही जागृति का स्वर यह, बन्धु, और कुछ गा न रहा मैं।
सोच रहा, समझा न रहा मैं।