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"रहस्य / रामधारी सिंह "दिनकर"" के अवतरणों में अंतर

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'''रहस्य'''
 
 
 
तुम समझोगे बात हमारी?
 
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22:43, 16 मार्च 2011 के समय का अवतरण

तुम समझोगे बात हमारी?
[१]
उडु-पुंजों के कुंज सघन में,
भूल गया मैं पन्थ गगन में,
जगे-जगे, आकुल पलकों में बीत गई कल रात हमारी।

[२]
अस्तोदधि की अरुण लहर में,
पूरब-ओर कनक-प्रान्तर में,
रँग-सी रही पंख उड़-उड़कर तृष्णा सायं-प्रात हमारी।

[३]
सुख-दुख में डुबकी-सी देकर,
निकली वह देखो, कुछ लेकर,
श्वेत, नील दो पद्म करों में, सजनी सध्यःस्नात हमारी।