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"कवितावली/ तुलसीदास / पृष्ठ 10" के अवतरणों में अंतर

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'''(वन के मार्ग में)'''
सुन्दर बदन , सरसीरूह सुहाए नैन,
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मंजुल प्रसून माथें मुकुट जटनि के।
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अंसनि सरासन, लसत सुचि सर कर,
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प्ुारतें निकसी रघुबीर बधू धरि धीर दए मगमें डग द्वै।
  
तून कटि , मुनिपट लूटक पटनि के।।
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झलकीं भरि भाल कनीं जलकी, पुट सूखि गए मधुराधर वै।।
  
नारि सुकुमारि संग, जाके अंग उबटि कै,  
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फिरि बूझति हैं, चलनो अब केतिक, पर्नककुटी करिहैं कित ह्वै?
  
बिधि बिरचैं बरूथ बिद्युतछटनि के।।
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तियकी लखि आतुरता पियकी अँखियाँ अति चारू चलीं जल च्वै।11।
  
गोरेको बरनु देखें सोनो न सलोनेा लागै,
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  साँवरे बिलोकें गर्ब घटत धटनि के।16।
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जलको गए लक्खनु, हैं लरिका,
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परिखौ, पिय! छाँह घरीक ह्वै ठाढ़े।
  
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पोेंछि पसेउ बयारि करौं ,
  
बलकल-बसन, धनु-बान पानि, तून कटि,
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अरू  पाय पखारिहौं भूभुरि-डाढ़े।।
  
रूपके निधान घन-दामिनी-बरन हैं।
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तुलसी रघुबीर प्रियाश्रम जानि कै
  
तुलसी सुतीय संग, सहज सुहाए अंग,
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बैठि बिलंब लौं कंटक काढ़े।
  
नवल कँवलहू तें केामल चरत हैं।।
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जानकीं नाहको नेहु लख्यो,
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पुलको तनु, बारि बिलोचन बाढ़े।12।
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औरै सो बसंतु, और रति, औरै रतिपति,  
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ठाढ़े हैं नवद्रुमडार गहें,  
  
मूरति बिलोकें तन-मनके हरन हैं।
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धनु काँधे धरें, कर सायकु लै।
  
तापस बेषै बनाइ पथिक पथें सुहाइ,  
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बिकटी भृकुटी, बड़री अँखियाँ,  
  
चले लोकलोचननि सुफल करन हैं।17।
+
अनमोल कपोलन की छबि है।।
  
 +
तुलसी अस मूरति आनु हिएँ,
  
बनिता बनी स्यामल गौर के बीच ,
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जड! डारू धौं प्रान निछावरि कै।।
  
बिलोकहु, री सखि! मोहि-सी ह्वै।
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श्रमसीकर साँवरि देह लसै,
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मनेा रासि महा तम तारकमै।13।
  
मनुजोगु न कोमल, क्यों चलिहै,
 
  
सकुचाति मही पदपंकज छ्वै।।
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जलजनयन, जलजानन जटा है सिर,
  
तुलसी सुनि ग्रामबधू बिथकीं,
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  जौबन -उमंग अंग उदित उदार है।।
   
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पुलकीं तन, औ चले लोचन च्वै।
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सब भाँति मनोहर मोहनरूप,  
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साँवरे-गोरेके बीच भामिनी सुदामिनी-सी,
  
अनूप हैं भूपके बालक द्वै।18।
+
मुनिपट धारैं , उर फूलनिके हार हैं।।
  
 +
करनि सरासन सिलीमुख, निषंग कटि,
  
  साँवरे-गोरे सलेाने सुभायँ, मनोहरताँ जिति मैनु लियो है।  
+
  अति ही अनूप काहू भूपके कुमार है।  
  
बान-कमान, निषंग कसें, सिर सोहैं जटा, मुनिबेषु कियेा है।।
+
तुलसी बिलोकि कै तिलोकके तिलक तीनि
  
संग लिएँ बिधुबैनी बधू, रतिको जेहि रंचक रूप दियो है।
+
  रहे नरनारि ज्यों चितेरे चित्रसार हैं।14।
  
पायन तौ पनहीं न , पयादेहिं क्यों चलिहैं, सकुचात हियो है।19।
 
  
 +
आगे साँवरो कुँवरू गोरो पाछें-पाछें,
  
रानी मैं जानी अयानी महा, पबि-पाहनहू तें कठोर हियो है।
+
आछे मुनिवेष धरें, लाजत अनंग हैं।
  
राजहुँ काजु अकाजु न जान्यो, कह्यो तियको जेहिं कान कियो है।।
+
बान बिसिषासन, बसन बनही के कटि ,
  
ऐसी मनेाहर मूरति ए, बिछुरें कैसे प्रीतम लोगु जियो है।
+
कसे हैं बनाइ, नीके राजत निषंग हैं।।
  
आँखिनमें सखि! राखिबे जोगु , इन्हैं  किमि कै बनबासु दियो है।20।
+
साथ निसिनाथ मुखी पाथनाथनंदिनी-सी,  
  
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तुलसी बिलोकें चितु लाइ लेत संग है।
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आनँद उमंग मन, जौबन-उमंग तन,
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रूपकी उमंग उमगत अंग-अंग है।15।
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11:18, 17 मार्च 2011 के समय का अवतरण

(वन के मार्ग में)

             
प्ुारतें निकसी रघुबीर बधू धरि धीर दए मगमें डग द्वै।

झलकीं भरि भाल कनीं जलकी, पुट सूखि गए मधुराधर वै।।

 फिरि बूझति हैं, चलनो अब केतिक, पर्नककुटी करिहैं कित ह्वै?

 तियकी लखि आतुरता पियकी अँखियाँ अति चारू चलीं जल च्वै।11।

 

जलको गए लक्खनु, हैं लरिका,
 
परिखौ, पिय! छाँह घरीक ह्वै ठाढ़े।

पोेंछि पसेउ बयारि करौं ,

अरू पाय पखारिहौं भूभुरि-डाढ़े।।

तुलसी रघुबीर प्रियाश्रम जानि कै

बैठि बिलंब लौं कंटक काढ़े।

जानकीं नाहको नेहु लख्यो,
 
पुलको तनु, बारि बिलोचन बाढ़े।12।
 

ठाढ़े हैं नवद्रुमडार गहें,

धनु काँधे धरें, कर सायकु लै।

बिकटी भृकुटी, बड़री अँखियाँ,

अनमोल कपोलन की छबि है।।

तुलसी अस मूरति आनु हिएँ,

जड! डारू धौं प्रान निछावरि कै।।

श्रमसीकर साँवरि देह लसै,
 
मनेा रासि महा तम तारकमै।13।


जलजनयन, जलजानन जटा है सिर,

 जौबन -उमंग अंग उदित उदार है।।

साँवरे-गोरेके बीच भामिनी सुदामिनी-सी,

 मुनिपट धारैं , उर फूलनिके हार हैं।।

करनि सरासन सिलीमुख, निषंग कटि,

 अति ही अनूप काहू भूपके कुमार है।

तुलसी बिलोकि कै तिलोकके तिलक तीनि

 रहे नरनारि ज्यों चितेरे चित्रसार हैं।14।


आगे साँवरो कुँवरू गोरो पाछें-पाछें,

आछे मुनिवेष धरें, लाजत अनंग हैं।

 बान बिसिषासन, बसन बनही के कटि ,

 कसे हैं बनाइ, नीके राजत निषंग हैं।।

साथ निसिनाथ मुखी पाथनाथनंदिनी-सी,

तुलसी बिलोकें चितु लाइ लेत संग है।

आनँद उमंग मन, जौबन-उमंग तन,

रूपकी उमंग उमगत अंग-अंग है।15।