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18:21, 17 मार्च 2011 के समय का अवतरण
छत मुंडेर घर आँगन
ज्योति जगमगाई,
दीवाली आई है,
दीवाली आई।
नील गगन में तारे
धरती पर दीप,
रोशनी की एक बाढ़
आ गई समीप।
ज्योति कलश छलके हैं
निशा फिर नहाई,
दीवाली आई है,
दीवाली आई।
खाखा कर रसगुल्ले
और कलाकंद,
लूट रहे हैं बच्चे
अनुपम आनंद।
दग रहे पटाखे
लो उड़ चली हवाई,
दीवाली आई है,
दीवाली आई
दिख रहा बच्चों में
आज बड़ा मेल
सुंदर खिलौनों से
खूब रहे खेल।
गाँव गाँव, नगर नगर
खुशहाली छाई,
दीवाली आई है,
दीवाली आई
- रामानुज त्रिपाठी