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|रचनाकार=गोपाल सिंह नेपाली }} {{KKAnthologyDiwali}}{{KKCatKavita‎}}<poem>
तन का दिया, प्राण की बाती,
दीपक जलता रहा रातभर।रात-भर । दु:ख की घनी बनी ऍंधियारीअँधियारी,
सुख के टिमटिम दूर सितारे,
उठती रही पीर की बदली,
मन के पंछी उडउड़-उड हारे।उड़ हारे । बची रही प्रिय की ऑंखों आँखों से,
मेरी कुटिया एक किनारे,
मिलता रहा स्नेह रस थोडा,
दीपक जलता रहा रातभर।रात-भर । 
दुनिया देखी भी अनदेखी,
नगर न जाना, डगर न जानी;
रंग देखा, रूप न देखा,
केवल बोली ही पहचानी,
 
कोई भी तो साथ नहीं था,
साथी था ऑंखों का पानी,
सूनी डगर सितारे टिमटिम,
पंथी चलता रहा रातभर।रात-भर । 
अगणित तारों के प्रकाश में,
मैं अपने पथ पर चलता था,
मैंने देखा, गगन-गली में,
चाँद -सितारों को छलता था।था ।ऑंधी आँधी में, तूफानों तूफ़ानों में भी,
प्राण-दीप मेरा जलता था,
कोई छली खेल में मेरी,
दिशा बदलता रहा रातभर।रात-भर ।
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