भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"होली डफ की / भारतेंदु हरिश्चंद्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: <poem> तेरी अँगिया में चोर बसैं गोरी। इन चोरन मेरो सरबस लूट्यौ मन लीन…) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
+ | {{KKGlobal}} | ||
+ | {{KKRachna | ||
+ | |रचनाकार=भारतेंदु हरिश्चंद्र | ||
+ | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
+ | {{KKAnthologyHoli}} | ||
<poem> | <poem> | ||
तेरी अँगिया में चोर बसैं गोरी। | तेरी अँगिया में चोर बसैं गोरी। | ||
पंक्ति 4: | पंक्ति 10: | ||
छोड़ि दे ईकि बंद चोलिया पकरै चोर हम अपनौ री। | छोड़ि दे ईकि बंद चोलिया पकरै चोर हम अपनौ री। | ||
‘हरीचंद’ इन दोउन मेरी नाहक कीनी चित चोरी री। | ‘हरीचंद’ इन दोउन मेरी नाहक कीनी चित चोरी री। | ||
− | |||
देखो बहियाँ मुरक मेरी ऐसी करी बरजोरी। | देखो बहियाँ मुरक मेरी ऐसी करी बरजोरी। | ||
पंक्ति 11: | पंक्ति 16: | ||
नहिं मानत कछु बात हमारी कंचुकि को बँद खोरी। | नहिं मानत कछु बात हमारी कंचुकि को बँद खोरी। | ||
एई रस सदा रसि को रहिओ ‘हरीचंद’ यह जोरी। | एई रस सदा रसि को रहिओ ‘हरीचंद’ यह जोरी। | ||
− | |||
</poem> | </poem> |
12:01, 18 मार्च 2011 के समय का अवतरण
तेरी अँगिया में चोर बसैं गोरी।
इन चोरन मेरो सरबस लूट्यौ मन लीनौ जोरा-जोरी।
छोड़ि दे ईकि बंद चोलिया पकरै चोर हम अपनौ री।
‘हरीचंद’ इन दोउन मेरी नाहक कीनी चित चोरी री।
देखो बहियाँ मुरक मेरी ऐसी करी बरजोरी।
औचक आय धरी पाछे तें लोकलाज सब छोरी।
छीन झपट चटपट मोरी गागर मलि दीनी मुख रोरी।
नहिं मानत कछु बात हमारी कंचुकि को बँद खोरी।
एई रस सदा रसि को रहिओ ‘हरीचंद’ यह जोरी।